hanuman – जानें हनुमान का जीवन, चरित्र तथा शक्तियां तथा और भी बहुत कुछ

ऐसा माना जाता है की हनुमान ( hanuman ) का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था। हनुमानजी के पिता वानरराज राजा केसरी और माता अंजनी थी। बहुत बार ऐसा पूछा जाता है कि क्या हनुमान शिव हैं, ऐसा माना गया है कि हनुमान रूद्र अर्थात शिव का 11 वां अवतार हैं | हनुमान को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत बलशाली है जो की वज्र के सामान है । हनुमान जी एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनका पूजन कलयुग में तुरंत फलदायी होता है।

इसलिए हनुमान जी से संबंधित चालीसा, आरती, अष्टक, स्त्रोत तथा अन्य सभी को नीचे दिया गया है आप वहां क्लिक करके उन्हें पढ़ सकते हैं तथा अपने जीवन में सफलता तथा घर तथा परिवार में सुख शांति ला सकते हैं | तत्पश्चात यहाँ पर हनुमान से संबंधित कई रोचक किस्सों व तथ्यों का वर्णन भी नीचे किया गया है |

1. bajrang baan

यदि आप अपने शत्रुओं व विरोधियों से बहुत परेशान है तो प्रत्येक मंगलवार बजरंग बाण का पाठ जरूर करें। इसके नियमित पाठ से आत्मविश्वास व साहस में वृद्धि होती है। यदि आप किसी भी शारीरिक समस्या से गुजर रहे हैं तो यह पाठ स्वास्थ्य में विशेष देगा।
बजरंग बाण को शांत मन के साथ, अपने आप को हनुमान जी के श्री चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से निश्चित ही धन धान्य, कीर्ति में बढ़ोतरी होती है तथा भय का नाश होता है |

2. sunderkand

यदि आपके किसी काम में अकारण ही कोई न कोई अड़चन या परेशानी आ जाती है तो सुंदरकांड का पाठ करने से वह दूर हो जाती हैं। सुंदरकांड का पाठ करने या सुनने से मानसिक शांति मिलती है तथा आत्मबल में वृद्धि होती है। यदि आप आत्मविश्वास की कमी या इच्छाशक्ति की कमी से जूझ रहे हैं तो यह पाठ जरूर करें । इस पाठ को बहुत लोग नवरात्री में भी करना पसंद करते हैं |

3. hanuman aarti

हनुमान जी की की आरती करने से जीवन में सुख समृद्धि आती है। नित्य आरती करने से मानसिक चिंताओं से भी मुक्ति मिलती है तथा जीवन में खुशहाली आती है | इससे धन धान्य में वृद्धि होती है और परिवार में सुख शांति बनी रहती है। यदि आप हनुमान आरती का सही तरीका जानने के लिए इसे जरूर पढ़ें |

4. hanuman ashtak

हनुमान अष्टक का नियमित पाठ आपके बड़े से बड़े कष्ट को भी दूर करने की क्षमता रखता है | जीवन में जब कभी बड़े संकट का सामना करना पड़ जाये तो ऐसे में प्रतिदिन 7 बार हनुमान अष्टक पाठ करना चाहिए | इस पाठ से स्वयं के आत्मविश्वास को बल अत्यधिक बल मिलता है तथा यह पाठ घर से नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में भी बहुत मदद करता है |

5. hanuman gayatri mantra

ऐसा कोई काम नहीं है जो हनुमान जी को समरण करने के बाद न हो यदि आप सच्ची श्रद्धा से सुबह उठकर हनुमान गायत्री मंत्र का जाप करेंगे तो आपका कोई भी काम अधूरा नहीं रहेगा अर्थात आपका हर कार्य निर्विघ्न पूर्ण होगा | मंगलवार तथा शनिवार को इस मंत्र का जाप अत्यंत शुभ होता है, वैसे आप इसे कभी भी पढ़ सकते हैं |

6. hanuman sathika

हनुमान साठिका बहुत ही चमत्कारी और मन को शांत करने वाला स्तोत्र है | हनुमान साठिका को पढ़ते समय शब्दों का सही उच्चारण करना अनिवार्य है | इस पाठ को हर दिन करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होते हैं | इस साठिका में हर प्रकार के रोगों को दूर करने तथा शत्रु का विनाश करने की शक्ति है।

7. hanuman vadvanal stotra

यह स्त्रोत हनुमान जी की उपासना करने का एक महामंत्र है | इस दिव्य वडवानल स्तोत्र पर श्री राम तथा हनुमान जी का असीम आशीर्वाद है | इस प्रभावशाली स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति सुरक्षित तथा भय से भी मुक्त महसूस करता है साथ ही वह रोगों से मुक्त, तथा उसके भौतिक जीवन की सभी इच्छाओं की भी पूर्ति करने मैं यह बहुत सहायक होता है।

8. hanuman stavan

हनुमान स्तवन पढ़ने से हनुमान जी बहुत प्रसन्न होते हैं और आप पर हनुमान जी का आशीर्वाद बना रहता है | इसके पाठ से आपके जीवन में सुख शांति बनी रहती है तथा जीवन में खुशियाँ आती हैं | इस पाठ को आप कभी भी कर सकते हैं |

9. Hanuman Dwadash Naam Stotram

हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करने से हनुमान जी का आशीवार्द तथा जातक को धन-धान्य में वृद्धि मिलती है | यदि जातक को कोई भी समस्या है तो हनुमान जी की कृपा से बहुत जल्दी समाधान होता है |

10. hanuman bahuk

हनुमान बाहुक का पाठ करने से जातक के सभी रोग दूर होने लगते हैं | इस पाठ को करने से मन में शांति का अनुभव होता है और साथ ही साथ इन सकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से आप हर मुश्किल का सामना आसानी से कर पाते हैं |

11. PanchMukhi Hanuman Kavach

इस कवच का पाठ करने से जातक को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है | पंचमुखी हनुमान कवच पढ़ने से हनुमान जी की असीम कृपा मिलती है तथा साथ ही आपके धन धान्य में वृद्धि होती है |

12. हनुमान जी के 108 नाम

हनुमान जी के 108 नामों का जाप करने से सारे बिगड़े काम बनेंगे और आपके जीवन में हमेशा सकारत्मकता बनी रहेगी |

हनुमान के जीवन के मुख्य प्रसंग

हनुमान जन्म

एक बार ऋषि दुर्वासा ने स्वर्ग में एक औपचारिक बैठक का आयोजन किया जिसमें इंद्रदेव भी भाग ले रहे थे | उस समय हर कोई सभासद गहन मंथन में डूबा हुआ था। परन्तु वहां एक पुंजिकस्थला नाम की अप्सरा अनजाने में उस बैठक में विघ्न पैदा कर रही थी। 

तब ऋषि दुर्वासा ने उस अप्सरा को ऐसा न करने के लिए कहा परन्तु ऋषि की कही गई बातों का उस अप्सरा पर कोई असर न पड़ा और उसने ऋषि की बातों को अनसुना कर दिया। तब ऋषि दुर्वासा ने क्रोध में आकर उस अप्सरा को श्राप देते हुए कहा कि तुमने यहाँ इस सभा में एक बंदर की तरह बर्ताव किया है। इसलिए तुम उसी प्रकार एक बंदरिया बन जाओ। तब ऋषि दुर्वासा के शाप को सुनकर अप्सरा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो ऋषि दुर्वासा से रोते हुए क्षमा मांगने लगी।

अप्सरा ने ऋषि दुर्वासा से बहुत क्षमा याचना की और कहा कि मैं आप सभी को परेशान करने के लिए यह काम नहीं कर रही थी। यदि मुझे इस बात का तनिक भी अंदाजा होता कि मेरी ऐसी मूर्खता से ऋषिवर इतने क्रोधित हो उठेंगे तो मैं ऐसा कदापि नहीं करती । तत्पश्चात ऋषि दुर्वासा ने उसकी विनम्र विनती को सुनकर अप्सरा से कहा कि हे प्रिये तुम रो मत।

अगले जन्म में तुम एक वानर कुल में जन्म लोगी और तुम्हारा विवाह भी वानर भगवान से ही होगा । तुम्हारा पुत्र भी वानर ही होगा जो की बहुत ही शक्तिशाली होगा और भगवान श्री राम का प्रिय भक्त होगा। यह सुनकर अप्सरा पुंजिकस्थला ने ऋषि दुर्वासा को नमस्कार करते हुए दिए गए श्राप को स्वीकार कर लिया ।

तब अप्सरा पुंजिकस्थला का जन्म माता अंजना के रूप में वानर (बंदर) भगवान विराज के यहां हुआ। जब माता अंजना विवाह योग्य हो गई तब उनकी शादी वानर भगवान केसरी से हुई | तत्पश्चात माता अंजना अपने पति के साथ सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगी। अंजना और केसरी एक शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। एक दिन शंखबल नामक जंगली हाथी ने अपना नियंत्रण खो दिया और हर जगह नुकसान करना शुरू कर दिया।

कई लोगों की इस कारण जान चली गई। बहुत सारे ऋषि इस वजह से अपना अनुष्ठान पूरा नहीं कर सके। भगवान केसरी उस शंखबल हाथी से बेहद प्रेम करते थे परन्तु इस परिस्थिति के कारण भगवान केसरी को अपने प्रिय हाथी को जब मरना पड़ा तो वह बहुत शोक में डूब गए।

यह देखकर संतों ने उन्हें यह वरदान दिया कि तुम्हारे घर एक बच्चा जन्म लेगा जो बहुत ही शक्तिशाली होगा और हवा की शक्ति तथा गति के बराबर होगा। तब इस प्रकार भगवान केसरी के घर में  माता अंजना ने भगवान श्री हनुमान को जन्म दिया। इस प्रकार हनुमान का जन्म हुआ और इसलिए उन्हें अंजनी पुत्र और पवन पुत्र कहा जाता है।

हनुमान का सूरज को फल समझना

यहाँ पर बाल हनुमान का सूरज को फल समझने वाला प्रसंग आप सभी के जरूर साझा करूँगा जो की उनके बल को दिखाता है तथा हनुमान को सभी दिव्य शक्तियां भी इसी प्रसंग में प्राप्त होंगी |

वाल्मीकि की रामायण के अनुसार, बचपन में एक सुबह हनुमान बहुत भूखे थे और उन्होंने उगते लाल रंग के सूरज को देखा तब वह उसे पका हुआ फल समझकर उसे खाने के लिए चल पड़े | यह देखकर देवताओं के राजा इंद्र ने हस्तक्षेप किया और हनुमान पर अपने वज्र से प्रहार किया ।

यह हनुमान के जबड़े पर लगा और वह टूटे जबड़े के साथ पृथ्वी पर गिर पड़े । रामायण के अनुसार हनुमान के पिता पवनदेव  यह देखकर परेशान हो गए और उन्होंने पृथ्वी की सारी हवा वापस खींचनी शुरू कर दी । वायु की कमी से सभी जीवित प्राणियों के जीवन पर संकट आ गया और सभी मरने जैसी स्थिति में आ गए । 

तब भगवान शिव को हस्तक्षेप करना पड़ा अन्यथा पूरी सृष्टि नष्ट हो जाती और शिव ने हनुमान को पुनर्जीवित किया, जिसने बदले में वायु को जीवित प्राणियों के पास लौटने के लिए प्रेरित किया। चूंकि गलती भगवान इंद्र द्वारा की गई थी, उन्होंने हनुमान को एक वरदान दिया कि उनका शरीर इंद्र के वज्र के समान मजबूत होगा, और उनका वज्र भी उन्हें कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा ।

इंद्र के साथ अन्य देवताओं ने भी उन्हें वरदान दिए : जैसे की अग्नि देव ने हनुमान को एक वरदान दिया कि अग्नि उन्हें कभी भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी; भगवान वरुण ने हनुमान के लिए एक इच्छा दी कि पानी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा;  भगवान वायु ने हनुमान को वरदान दिया कि वह हवा के समान तेज होंगे और हवा उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगी। 

इसी प्रकार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने भी हनुमान को वरदान दिया कि वह किसी भी स्थान पर जा सकते हैं जहां उन्हें कभी भी रोका नहीं जा सकेगा; भगवान विष्णु ने हनुमान को ” गदा ” नाम का एक हथियार दिया । ये सभी वरदान हनुमान जी को अत्यंत बलशाली बना देते हैं ।

बचपन में राम तथा हनुमान का मिलन

ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम देवी सीता की खोज में वनों में भटक रहे थे, तब हनुमान से राम जी की पहली मुलाकात हुई थी। लेकिन आनंद रामायण में एक प्रसंग बताया गया है कि भगवान राम और हनुमान बचपन में साथ खेले हैं। उस कथा के अनुसार, भगवान शिव को भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के बाल रूप को देखने की बड़ी लालसा हुई तब वह मदारी बनकर अयोध्या आए।

शिव जी के साथ वानर के रूप हनुमान जी भी आए। वानर बने हनुमान जी को देखकर भगवान राम उन्हें पाने के लिए लालायित हो उठे तब श्री राम के पिता राजा दशरथ ने मदारी बने शिव जी से हनुमान को खरीद लिया। इसके बाद जब तक भगवान राम गुरुकुल शिक्षा के लिए नहीं गए हनुमान जी भगवान राम के साथ ही रहे।

हनुमान लंका प्रसंग 

जब राम और उनके भाई लक्ष्मण वनवास के समय, श्री राम की अपहृत पत्नी, सीता की तलाश में किष्किंधा पहुंचे और राम के नए सहयोगी वानर राज सुग्रीव से मिले, तब श्री राम की लापता पत्नी की खोज के लिए चारों दिशाओं में वानरों के छोटे छोटे दलों को भेजने के लिए सहमति हुई । दक्षिण में, राजा सुग्रीव ने हनुमान और कुछ अन्य लोगों को भेजा, जिसमें महान भालू जाम्बवंत भी शामिल थे। 

यह समूह भारत के सबसे दक्षिणी सिरे तक यात्रा करता है, जहाँ वे समुद्र पार क्षितिज में दिखाई देने वाले लंका द्वीप (आधुनिक दिन श्रीलंका) को देखते हैं। समूह उस लंका द्वीप की जांच करना चाहता था, लेकिन मुश्किल यह थी की उस समुद्र को पार कैसे किया जाये | हालांकि, जाम्बवंत पूर्व की घटनाओं से यह जानते थे कि हनुमान इस तरह के कार्य को आसानी से करने में सक्षम थे | 

तब हनुमान जी को उनकी दिव्य शक्तियों को याद दिलाया गया । तब ऐसा कहा जाता है कि हनुमान एक पहाड़ के समान बड़े आकार में परिवर्तित हो गए और लंका के लिए उड़ान भरी। लंका द्वीप उतरने पर, उन्हें लंका के राजा रावण और उसके दानव अनुयायियों से आबाद एक शहर का पता चला, इसलिए उन्होंने अपने आकार को छोटा करके एक चींटी के समान कर लिया और शहर में घुस गए । 

शहर में उन्होंने सभी जगह सीता जी की खोज की, अंत में वह सीता जी को एक उपवन में पाता है, जो राक्षस योद्धाओं द्वारा संरक्षित था । जब वे सभी राक्षस सो जाते हैं, तो वह सीता से मिलता है और माता सीता को प्रभु श्री राम की निशानी देते हैं और बताते हैं कि वह उन्हें खोजने आया है । तब सीता बताती हैं कि लंका के राजा रावण ने उनका अपहरण कर लिया और उसे जल्द ही उससे शादी करने के लिए मजबूर कर रहा है। तब हनुमान जी उन्हें बचाने की पेशकश करते हैं लेकिन सीता यह कहते हुए मना कर देती है कि उनके पति श्री राम को ही यह करना चाहिए ।

तत्पश्चात हनुमान, उस सुंदर वाटिका में फल खाकर उसे नष्ट करना शुरू कर देते हैं और बहुत से योद्धा जब उनसे लड़ने के लिए आते हैं तो सब को हनुमान जी धराशाही कर देते हैं, परन्तु अंत में वह अपनी इच्छा से कैद हो जाते हैं, और लंका नरेश रावण के दरबार में ले जाए जाते हैं तब हनुमान रावण को बताते हैं कि श्री राम अपनी अर्धांगिनी सीता जी को वापस लेने आ रहे हैं। 

तब इस बात से क्रोधित होकर रावण अपने सेवकों को हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है |  उस समय जब वे हनुमान की पूँछ को जलाने के लिए तेल से लथपथ कपड़ा डालते हैं, तो हनुमान अपनी पूंछ को और लंबा कर लेते है ताकि और कपड़े जोड़ने पड़े। फिर रावण हनुमान जी की पूंछ में आग लगा देता है फिर उस पूंछ पर लगी आग की मदद से वह एक छत से दूसरी छत तक कूदता है और इमारत दर इमारत जलाते रहते है, वह लंका का अधिकांश भाग जला देते हैं । तत्पश्चात हनुमान अपनी पूंछ की आग बुझाकर वापसी करते हैं ।

लौटने पर, वह अपने दल को सारी बात बताते हैं कि लंका में क्या हुआ था और सभी किष्किंधा वापस लौट जाते हैं, जहां राम समाचार के लिए इंतजार कर रहे थे। यह सुनकर कि सीता सुरक्षित हैं और उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं, राम ने सुग्रीव की सेना को इकट्ठा किया और लंका के लिए रवाना हुए। इस प्रकार लंका की पौराणिक लड़ाई शुरू होती है।

हनुमान का हिमालय से संजीवनी बूटी लाना

इस लंबी लड़ाई के दौरान, हनुमान ने सेना में एक सेनापति के रूप में भूमिका निभाई। एक भीषण लड़ाई के दौरान, जब मेघनाद की शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे | तब हनुमान जी ही उनके लिए संकटमोचन बने और लंका से सुषेण वैद्य को लेकर आए | तब वैद्य ने बताया कि इस शक्ति बाण का इलाज हिमालय के द्रोणाचल पर्वत के शिखर पर पाई जाने वाली संजीवनी बूटी से ही हो सकता है | जिसको सूर्योदय होने से पहले लाना होगा |

केवल इसी संजीवनी बूटी से ही लक्ष्मण जी के प्राण बच सकते हैं | ये सुनते ही राम भक्त हनुमान जी संजीवनी बूटी को लेने के लिए वहां से निकल पड़े | वहीं जब रावण को इस बात की सूचना मिली तो उसने हनुमान को रोकने के लिए कई बाधाएं डाली और कईं षड्यंत्र भी रचे जिससे की हनुमान संजीवनी बूटी न ला पाएं | 

इसके लिए उसने कालनेमि को इस काम में लगा दिया, जिससे कि किसी तरह भी हनुमान जी समय से उस संजीवनी बूटी को लेकर ना पहुंच सकें | रावण किसी तरह से भी हनुमान जी को रोकना चाहता था | इसलिए रावण ने कालनेमि से हनुमान को रोकने के लिए हर प्रकार की माया का प्रयोग करने को कहा, जिससे की हनुमान की यात्रा में विघ्न पैदा हो सके | रावण की इस बात पर कालनेमि ने कहा कि हनुमान को माया से मोहित कर पाने में इस संसार में कोई भी समर्थ नहीं है और अगर कोई भी यह करने का प्रयास भी करता है तो वो निश्चित ही उनके हाथों मारा जाएगा | 

​इस पर रावण ने कालनेमि से कहा कि अगर तुम मेरे आदेश को नहीं पूरा करोगे, तो फिर तुम्हें यहीं मरना होगा | तब कालनेमि ने सोचा कि रावण के हाथों मरने से अच्छा है कि वह हनुमान जी के हाथों से ही क्यों ना मरा जाए | तब उसने अपनी माया से हनुमान जी के रास्ते में ही एक सुंदर कुटिया का निर्माण किया और इसके बाद वो वहां एक ऋषि का वेश धारण कर बैठ गया | 

इसी दौरान जब हनुमान जी आकाश मार्ग से जा रहे थे तब अचानक से हनुमान जी को प्यास लगी, तभी वो वहां पर स्थित सुंदर कुटिया देखकर नीचे आ गए | हनुमान जी ने ऋषि का रूप धारण किये कालनेमि को प्रणाम किया और पीने के लिए जल मांगा, तभी कालनेमि ने कहा कि राम और रावण के बीच युद्ध हो रहा है | जिसमें राम जी ही विजयी होंगे | मैं यहां से सब देख पा रहा हूं | तभी कालनेमि ने अपने कमंडल की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि इसमें शीतल जल है, आप इसे ग्रहण कर सकते हैं | तब हनुमान ने कालनेमि से कहा कि इतने से जल से उनकी प्यास नहीं बुझ सकेगी | कृपया कोई और जलाशय के बारे में बताएं | 

तभी कालनेमि ने हनुमान जी को एक जलाशय दिखाया और उनसे कहा कि वो वहां पर जाकर जल पीकर स्नान कर सकते हैं | जिसके बाद ही वो उनको फिर दीक्षा देगा | हनुमान जी बताए गए जलाशय पर पहुंच गए और वहां स्नान करने लगे, तभी वहां पर एक मकड़ी ने उनका पैर पकड़ लिया. जिसके बाद हनुमान जी ने उसका मुंह फाड़ दिया, जिससे वह मकड़ी तुरंत ही मर गई | 

इसके बाद ही वहां पर एक अप्सरा प्रकट हुई | अप्सरा ने हनुमान जी से कहा कि श्राप मिलने के कारण उसे मकड़ी बनना पड़ा था | अब आपके दर्शन मिलने से मैं पवित्र हो गई और मुनि के श्राप से भी मुक्त हो गई हूँ | इसके बाद अप्सरा ने हनुमान जी को बताया कि आश्रम में बैठा हुआ ऋषि एक राक्षस है, जिसका नाम कालनेमि है | 

इस बात का पता लगते ही हनुमान तुरंत कालनेमि के पास गए और बोले कि मुनिवर ! सबसे पहले आप अपनी गुरु दक्षिणा ले लीजिए | मंत्र मुझे बाद में दीजिएगा | इतना कहने के बाद ही हनुमान जी ने उस कालनेमि को अपनी पूंछ में लपेट लिया और वहीं पर पटक कर मार डाला | मरते वक़्त कालनेमि का राक्षस स्वरुप हनुमान जी के सामने आया और उसने मरते वक़्त राम का नाम लिया, जिस कारण उसका उद्धार हो गया | 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी हिमालय की कंदराओं में संजीवनी बूटी की खोज करते रहे, लेकिन उन्हें संजीवनी बूटी की सही पहचान नहीं थी | जिस कारण वो द्रोणागिरी पहाड़ के ही एक टुकड़े को उठाकर ले आए | जब हनुमान पहाड़ को लेकर युद्धक्षेत्र पहुंचे तब उन्होंने पहाड़ को वहीं रख दिया |  वैद्य ने संजीवनी बूटी को पहचाना और लक्ष्मण जी का उपचार किया |

अंत में, राम ने अपनी दिव्य शक्तियों को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रकट किया, और रावण और बाकी राक्षस सेना को मार डाला। अंत में राम विजयी हुए और युद्ध समाप्त हो गया, राम राजा के रूप में अपने स्थान अयोध्या के अपने घर लौट आए। 

हनुमान को अमरता का वरदान

बहुत लोग यह प्रश्न भी करते हैं की क्या हनुमान अभी भी जीवित हैं, जी हाँ हनुमान अभी भी जीवित हैं और उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है | जिसका पूरा प्रसंग यहाँ दिया गया है | जिन लोगों ने युद्ध में राम की सहायता की, उन सभी को आशीर्वाद तथा उपहार देने के बाद, राम ने माता सीता की इच्छा से हनुमान को उपहार दिया, परन्तु हनुमान ने उसे फेंक दिया। हनुमान जी के ऐसा करने से सभी चकित हो गए | तब हनुमान ने उत्तर दिया कि राम को याद करने के लिए उन्हें उपहार की आवश्यकता नहीं है, राम तो हमेशा उनके दिल में रहेंगे । 

कुछ दरबारी अधिकारियों ने, अभी भी परेशान होकर, उनसे सबूत मांगा और हनुमान ने अपनी छाती को फाड़ दिया, जिसमें उनके दिल पर राम और सीता की छवि दिखाई दी | तब प्रभु श्री राम ने हनुमान को अमरता का आशीर्वाद दिया, लेकिन हनुमान ने केवल राम के चरणों में उनकी सेवा करने के लिए जगह मांगी। इस प्रकार हनुमान ने अपनी सच्ची भक्ति दिखाई | राम जी के उस आशीर्वाद के कारण ऐसा माना जाता है की हनुमान कल्प (ब्रह्मांड का विनाश) के बाद भी जीवित रहेंगे।

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