हनुमान साठिका के लाभ, अर्थ तथा पाठ करने की सही विधि तथा रचयिता

हनुमान साठिका बहुत ही चमत्कारी और मन को शांत करने वाला स्तोत्र है | हनुमान साठिका को पढ़ते समय शब्दों का सही उच्चारण करना अनिवार्य है | इस पाठ को हर दिन करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होते हैं | इस साठिका में हर प्रकार के रोगों को दूर करने तथा शत्रु का विनाश करने की शक्ति है।

हनुमान जी कृपा बने रहने से हनुमान जी पहले ही आपकी सारी कठिनाइयाँ और बाधाएं दूर कर देते हैं | हनुमान साठिका का पाठ विधि पूर्वक साठ दिनों तक करना चाहिये | इसका पाठ आप हनुमान जी के दिन यानी कि किसी भी मंगलवार से शुरू कर सकते हो | सुबह उठकर नित्य क्रिया करके उसके बाद विधिपूर्वक पाठ का आरम्भ कर सकते हैं |

श्री हनुमान साठिका तथा हनुमान चालीसा का पाठ यदि आप साफ मन के साथ करें तो निश्चित ही आप को हनुमान की कृपा प्राप्त होगी तथा आपके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे | यहाँ पर हमने श्री हनुमान साठिका को अर्थ सहित भी बताया है और साथ ही साथ अगर आप चाहें तो hanuman sathika pdf भी डाउनलोड कर सकते हैं |

हनुमान साठिका | hanuman sathika lyrics in hindi | hanuman sathika benefits

hanuman sathika lyrics

— दोहा —

वीर बखानौं पवनसुत,जानत सकल जहान |
धन्य-धन्य अञ्जनितनय,संकट हर हनुमान ||

— चौपाइयां —

जय जय जय हनुमान अडंगी ।
महावीर विक्रम बजरंगी ॥

जय कपीश जय पवन कुमारा ।
जय जगबन्दन सील अगारा ॥

जय आदित्य अमर अबिकारी ।
अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥

अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा ।
जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥

बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा ।
सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥

कपि के डर गढ़ लंक सकानी ।
छूटे बंध देवतन जानी ॥

ऋषि समूह निकट चलि आये ।
पवन तनय के पद सिर नाये॥

बार-बार अस्तुति करि नाना ।
निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।
दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥

सुनत बचन कपि मन हर्षाना ।
रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥

रथ समेत कपि कीन्ह अहारा ।
सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥

विनय तुम्हार करै अकुलाना ।
तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥

सकल लोक वृतान्त सुनावा ।
चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥

कहा बहोरि सुनहु बलसीला ।
रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥

तब तुम उन्हकर करेहू सहाई ।
अबहिं बसहु कानन में जाई ॥

असकहि विधि निजलोक सिधारा ।
मिले सखा संग पवन कुमारा ॥

खेलैं खेल महा तरु तोरैं ।
ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं ॥

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई ।
गिरि समेत पातालहिं जाई ॥

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।
निरखति रहे राम मगु आसा ॥

मिले राम तहं पवन कुमारा ।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई ।
सीता खोज चले सिरु नाई ॥

सतयोजन जलनिधि विस्तारा ।
अगम अपार देवतन हारा ॥

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा ।
लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥

सीता चरण सीस तिन्ह नाये ।
अजर अमर के आसिस पाये ॥

रहे दनुज उपवन रखवारी ।
एक से एक महाभट भारी ॥

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा ।
दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥

सिया बोध दै पुनि फिर आये ।
रामचन्द्र के पद सिर नाये ॥

मेरु उपारि आप छिन माहीं ।
बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥

लछमन शक्ति लागी उर जबहीं ।
राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥

भवन समेत सुषेन लै आये ।
तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥

मग महं कालनेमि कहं मारा ।
अमित सुभट निसिचर संहारा ॥

आनि संजीवन गिरि समेता ।
धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥

फनपति केर सोक हरि लीन्हा ।
वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥

अहिरावण हरि अनुज समेता ।
लै गयो तहां पाताल निकेता ॥

जहां रहे देवि अस्थाना ।
दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥

पवनतनय प्रभु कीन गुहारी ।
कटक समेत निसाचर मारी ॥

रीछ कीसपति सबै बहोरी ।
राम लषन कीने यक ठोरी ॥

सब देवतन की बन्दि छुड़ाये ।
सो कीरति मुनि नारद गाये ॥

अछयकुमार दनुज बलवाना ।
कालकेतु कहं सब जग जाना ॥

कुम्भकरण रावण का भाई ।
ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥

मेघनाद पर शक्ति मारा ।
पवन तनय तब सो बरियारा ॥

रहा तनय नारान्तक जाना ।
पल में हते ताहि हनुमाना ॥

जहं लगि भान दनुज कर पावा ।
पवन तनय सब मारि नसावा ॥

जय मारुत सुत जय अनुकूला ।
नाम कृसानु सोक सम तूला ॥

जहं जीवन के संकट होई ।
रवि तम सम सो संकट खोई ॥

बन्दि परै सुमिरै हनुमाना ।
संकट कटै धरै जो ध्याना ॥

जाको बांध बामपद दीन्हा ।
मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥

सो भुजबल का कीन कृपाला ।
अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥

आरत हरन नाम हनुमाना ।
सादर सुरपति कीन बखाना ॥

संकट रहै न एक रती को ।
ध्यान धरै हनुमान जती को ॥

धावहु देखि दीनता मोरी ।
कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु ।
आतुर आइ दुसइ दुख हरहु ॥

राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।
जवन गुहार लाग सिय जाया ॥

यश तुम्हार सकल जग जाना ।
भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥

यह बन्धन कर केतिक बाता ।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥

करौ कृपा जय जय जग स्वामी ।
बार अनेक नमामि नमामी ॥

भौमवार कर होम विधाना ।
धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥

मंगल दायक को लौ लावे ।
सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥

जयति जयति जय जय जग स्वामी ।
समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥

अंजनि तनय नाम हनुमाना ।
सो तुलसी के प्राण समाना ॥

— दोहा —

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण॥

बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण॥

जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि॥

— सवैया —

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥

जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥

हनुमान साठिका अर्थ सहित !

— दोहा —

वीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान ।
धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥

भावार्थ – वीर पवन पुत्र की कीर्ति का वर्णन करता हूँ जिन्हें सम्पूर्ण संसार जानता है। हे अंजनी पुत्र! हे भगवान शंकर के अवतार हनुमान जी ! आप धन्य हैं।

जय जय जय हनुमान अडंगी ।
महावीर विक्रम बजरंगी ॥

भावार्थ – हे परम वीर हनुमान आपकी जय हो, आपकी जय हो । आपकी गति अबाध्य है अर्थात जिसमें कोई भी किसी भी तरह की बाधा नहीं डाल सकता है तथा न कोई आपका मार्ग नहीं रोक सकता है । हे हनुमान आप वज्र के समान ही कठोर अंगों वाले महावीर हो, आपकी जय हो, आपकी जय हो ।

जय कपीश जय पवन कुमारा ।
जय जगबन्दन सील अगारा ॥

भावार्थ – हे कपि श्रेष्ठ आप कपियों के राजा हैं | आपकी जय हो । हे पवनसुत ! आपकी जय हो । हे हनुमान आप सारे संसार के लिए वंदनीय हैं आप तो असंख्य गुणों के भंडार हैं | आपकी जय हो, आपकी जय हो ।

जय आदित्य अमर अबिकारी ।
अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥

भावार्थ – हे कौशलपूर्ण तथा हर कला में निपुण देवता आप सभी प्रकार के विकारों से परे हैं ! आपकी जय हो । हे प्रभु आप शत्रुओं का नाश करने वाले हैं ! आपकी जय हो। हे हनुमान आपने अपने अतुलित बल द्वारा द्रोणाचल को उठाया था ! आपकी जय हो, आपकी जय हो । 

अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा ।
जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥

भावार्थ – हे हनुमान जब आपने माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया तब सभी देवताओं ने आपकी जय- जयकार की । आपकी जय हो ।

बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा ।
सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥

भावार्थ – आकाश में हर्षो उल्लास का माहौल था नगाड़े बजे, देवताओं के मन हर्षित हुए तथा असुरों के मन में बहुत पीड़ा हुई।

कपि के डर गढ़ लंक सकानी ।
छूटे बंध देवतन जानी ॥

भावार्थ – हे हनुमान आपके डर से लंका के किले में रहने वाले सभी राक्षस भयभीत हो गये । आपने सभी देवताओं को राक्षसों के कारागार से छुड़ाया। 

ऋषि समूह निकट चलि आये ।
पवन तनय के पद सिर नाये ॥

भावार्थ – हनुमान जी, ऋषियों के समूह आपके पास आए तथा सभी ने आपके चरणों में नतमस्तक हो गए | आपकी जय हो | 

बार-बार अस्तुति करि नाना ।
निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥

भावार्थ – सभी ने अलग अलग तरह से बार-बार आपकी स्तुति की और आपका पावन नाम ‘ हनुमान् ‘ रखा गया | 

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।
दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥

भावार्थ – सभी ऋषियों ने सर्वसम्मति से हे हनुमान जी आपको लाल रंग का फल खाने की प्रेरणा दी | 

सुनत बचन कपि मन हर्षाना ।
रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी लाल रंग का फल का नाम सुनकर आप बहुत खुश हुए और सूर्य को ही लाल फल समझ लिया | 

रथ समेत कपि कीन्ह अहारा ।
सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥

भावार्थ – तब हे हनुमान जी आपने सूर्य को रथ सहित पकड़ कर मुँह में रख लिया। तब सभी जगह बहुत अधिक भय छा गया और सृष्टि में हाहाकार मच गया।

विनय तुम्हार करै अकुलाना ।
तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥

भावार्थ – सूर्य के बिना पूरी सृष्टि का जीवन संकट में आ गया तब सभी देवता तथा मुनि व्याकुल होकर हे पवनसुत आपकी स्तुति करने लगे | 

सकल लोक वृतान्त सुनावा ।
चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥

भावार्थ – सारे संसार की ऐसी दशा सुनकर ब्रह्मा जी ने सूर्य को मुक्त करने के लिए हे पवनसुत आपको मना लिया ।

कहा बहोरि सुनहु बलसीला ।
रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥

भावार्थ – उस समय आपसे विनती की, हे महावीर, हे हनुमान; सुनिये भगवान श्री रामचंद्र जी आने वाले समय में महान लीलाएं करेंगे | 

तब तुम उन्हकर करेहू सहाई ।
अबहिं बसहु कानन में जाई ॥

भावार्थ – तब हनुमान जी से श्री राम प्रभु की सहायता करने के लिए कहा गया। हे महावीर अभी आप वन में जाकर कुछ समय वहां रहिये।

असकहि विधि निजलोक सिधारा ।
मिले सखा संग पवन कुमारा ॥

भावार्थ – यह कहकर ब्रह्माजी अपने लोक को चले गए और हनुमान जी आप अपने सखाओं से मिल गए | 

खेलैं खेल महा तरु तोरैं ।
ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी आपने खेल-खेल में बड़े – बड़े वृक्ष गिरा डाले और बहुत से पर्वतों को फोड़ – फोड़ कर ढेर कर दिया।

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई ।
गिरि समेत पातालहिं जाई ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी आपकी शक्ति अपरंपार है आपने जिस भी पर्वत पर अपने चरण रखे वह पाताल में समा गया। 

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।
निरखति रहे राम मगु आसा ॥

भावार्थ – सुग्रीव जी अपने बड़े भाई बाली से बहुत डरे हुए थे। परन्तु उन्हें श्री रामचंद्र जी के आने की आस थी जिसने उन्हें निर्भय रखा हुआ था ।

मिले राम तहं पवन कुमारा ।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥

भावार्थ – हे पवनसुत आपने लाकर उन्हें श्री रामचंद्र जी से मिला दिया तब आपको बहुत ही प्रेम तथा आनंद मिला | 

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई ।
सीता खोज चले सिरु नाई ॥

भावार्थ – हे महावीर ! आपको श्री राम जी से मणि जड़ित अंगूठी मिली जिसे लेकर आप सीता माता की खोज करने निकल गए । 

सतयोजन जलनिधि विस्तारा ।
अगम अपार देवतन हारा ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी ! अब आपके सामने सौ योजन का विशाल समुद्र था जिसे देवता और मुनि भी पार करने में असमर्थ थे | 

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा ।
लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥

भावार्थ – हे महावीर आपने उस समुद्र को ‘जय श्री राम‘ कहकर बिना किसी थकन के सहज ही गऊ के खुर के समान लाँघ लिया ।

सीता चरण सीस तिन्ह नाये ।
अजर अमर के आसिस पाये ॥

भावार्थ – लंका में सीता माता के पास पहुंचकर आपने उनकी चरण वंदना की जिस पर सीता जी ने आपको अजर अमर होने का आशीर्वाद दिया | 

रहे दनुज उपवन रखवारी ।
एक से एक महाभट भारी ॥

भावार्थ – वहां लंका नगरी में एक से एक महाभयंकर राक्षस, राक्षस वाटिका की रखवाली करते थे।

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा ।
दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥

भावार्थ – आपने उन महा भयंकर राक्षसों का संहार कर दिया था तथा उस उपवन को भी नष्ट करके, लंका नगरी को जला डाला जिससे लंकापति रावण भी भयभीत होकर काँप उठा ।

सिया बोध दै पुनि फिर आये ।
रामचन्द्र के पद सिर नाये।

भावार्थ – फिर आपने सीता जी को धीरज दिया और वापस लौट कर श्री रामचंद्र जी के चरणों में सिर नवाया ।

मेरु उपारि आप छिन माहीं ।
बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥

भावार्थ – लंका नगरी पर सारी सेना को ले जाने के लिए अपने बड़े – बड़े पर्वतों को लाकर आपने पलभर में समुद्र पर पुल बंधवाया | 

लछमन शक्ति लागी उर जबहीं ।
राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥

भावार्थ – युद्ध के दौरान जब जब श्री राम के भाई श्री लक्ष्मण जी को शक्ति लगी उस समय श्री रामचंद्र ने बहुत विलाप किया।

भवन समेत सुषेन लै आये ।
तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥

भावार्थ – उस मुश्किल समय में हे महावीर आप लंका के सुषेन वैद्य को उनके भवन समेत ही उठा लाए और जब लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी की जरूरत पड़ी तो आप उसे बड़े वेग से लेने गए।

मग महं कालनेमि कहं मारा ।
अमित सुभट निसिचर संहारा ॥

भावार्थ – बूटी लेने जाते समय रास्ते में आपने कालनेमि को मारा और असंख्य योद्धा तथा निशाचर जिस किसी ने भी आपका रास्ता रोकने की कोशिश की उन्हें आपने नष्ट कर दिया | 

आनि संजीवन गिरि समेता ।
धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥

भावार्थ – अंत में आपने पर्वत सहित संजीवनी को लाकर करुणा निधान श्री राम के पास रख दिया | 

फनपति केर सोक हरि लीन्हा ।
वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥

भावार्थ – इस प्रकार आपने लक्ष्मण जी के संकट को दूर किया और देवताओं ने मिलकर आप पर पुष्प-वर्षा करके आपकी जय-जयकार की।

अहिरावण हरि अनुज समेता ।
लै गयो तहां पाताल निकेता ॥

भावार्थ – उसके उपरांत जब अहिरावण श्री राम तथा लक्ष्मण को पाताल में ले गया ।

जहां रहे देवि अस्थाना ।
दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥

भावार्थ – वहाँ देवी के स्थान पर श्री राम तथा लक्ष्मण जी की बलि देने के लिए उसने तलवार निकाल ली।

पवनतनय प्रभु कीन गुहारी ।
कटक समेत निसाचर मारी ॥

भावार्थ – उसी समय हे परम प्रतापी महावीर, आपने वहाँ पहुँच कर उस राक्षस को ललकारा और उसे उसकी पूरी सेना समेत मार डाला | 

रीछ कीसपति सबै बहोरी ।
राम लषन कीने यक ठोरी ॥

भावार्थ – तत्पश्चात आप हनुमान जी जहां पर जामवंत और सुग्रीव थे, वहाँ आप श्रीराम तथा लक्ष्मण को लौटा लाए।

सब देवतन की बन्दि छुड़ाये ।
सो कीरति मुनि नारद गाये ॥

भावार्थ – आपने सब देवताओं को राक्षसों के बंधन से मुक्त कर दिया और नारद मुनि ने आपका यशगान किया | 

अछयकुमार दनुज बलवाना ।
कालकेतु कहं सब जग जाना ॥

भावार्थ – अक्षय कुमार राक्षस एक बहुत ही बलवान राक्षस था। जिसे केतु के नाम से यह सारा संसार जानता है।

कुम्भकरण रावण का भाई ।
ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥

भावार्थ – रावण का एक भाई कुंभकरण भी था । हे वानर राज ! आपने ही इन सभी राक्षसों का विनाश किया | 

मेघनाद पर शक्ति मारा ।
पवन तनय तब सो बरियारा ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी आपने युद्ध में रावण के भाई मेघनाथ को भी पछाड़ा है । हे पवन कुमार ! आपके समान और कौन बलवान है ?

रहा तनय नारान्तक जाना ।
पल में हते ताहि हनुमाना ॥

भावार्थ – मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले नरान्तक नाम के राक्षस जो की रावण का पुत्र था हे हनुमान जी उसे भी आपने क्षण भर में परास्त कर दिया ।

जहं लगि भान दनुज कर पावा ।
पवन तनय सब मारि नसावा।

भावार्थ – जहाँ – जहाँ भी आपने राक्षसों को पाया, हे शिव अवतार ! आपने संहार कर दिया ।

जय मारुत सुत जय अनुकूला ।
नाम कृसानु सोक सम तूला ॥

भावार्थ – हे मारुती सुत ! आपकी जय हो । आप सेवकों के हर कार्य को सिद्ध करने में सहायक हुए हो । उनके शोक रूपी रूई को जलाने में आपका नाम अग्नि के समान है | 

जहं जीवन के संकट होई ।
रवि तम सम सो संकट खोई ॥

भावार्थ – जिस किसी के भी जीवन में किसी भी प्रकार का कोई भी संकट हो, आप उसे पल भर में ही दूर कर देते हैं जैसे कितना भी घना अँधेरा हो सूर्य उसे पल भर में समाप्त कर देता है ।

बन्दि परै सुमिरै हनुमाना ।
संकट कटै धरै जो ध्याना ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी ! बंदी होने पर जो आपका स्मरण करता है उसकी रक्षा करने के लिये आप गदा और चक्र लेकर उसे कारगर से मुक्त कराने पहुंच जाते हो ।

जाको बांध बामपद दीन्हा ।
मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥

भावार्थ – हे वीर हनुमान आप तो यमराज को भी ऊपर दिशा में फेंक देते हैं तथा मृत्यु की भी बुरी दशा करते हो ।

सो भुजबल का कीन कृपाला ।
अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥

भावार्थ – हे कृपा के सागर ! आपकी सभी शक्तियां कहाँ गयी जो आपके रहते मेरी यह दशा हो रही है |  

आरत हरन नाम हनुमाना ।
सादर सुरपति कीन बखाना ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी ! आपका नाम संकटमोचन है। स्वयं सरस्वती माता और देवराज इंद्र ने ऐसा वर्णन किया है | 

संकट रहै न एक रती को ।
ध्यान धरै हनुमान जती को ॥

भावार्थ – जो भी व्यक्ति हनुमान जी आपका ध्यान करता है उसके जीवन में एक रत्ती के बराबर भी संकट नहीं रह सकता। 

धावहु देखि दीनता मोरी ।
कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥

भावार्थ – हे कृपा निधान कृपा कर आप मेरी दीनता देखकर अति तीव्र गति से आइये और मुझे इन बंधनों से मुक्त कर दीजिए। मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूँ।

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु ।
आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥

भावार्थ – हे हनुमान जी ! आप मुझ पर शीघ्र अपनी कृपा बरसाए। मेरा दुःख दूर करने के लिए आप उतावले होकर आइये |  

राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।
जवन गुहार लाग सिय जाया ॥

भावार्थ – हे महावीर ! यदि आप मेरी पुकार सुनकर न आए तो मैं आप को श्री राम की शपथ देता हूं । 

यश तुम्हार सकल जग जाना ।
भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥

भावार्थ – हे पवनसुत आपका यश सारा संसार जानता है | हे हनुमान जी, आप संसार में बार-बार जन्म लेने के भय को भी दूर कर देते हैं | 

यह बन्धन कर केतिक बाता ।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥

भावार्थ – प्रभु फिर मेरा तो यह बंधन उसके आगे कुछ भी नहीं है | आपको जगत में सभी सुख देने वाला सुखदाता भी कहते हैं |  

करौ कृपा जय जय जग स्वामी ।
बार अनेक नमामि नमामी ॥

भावार्थ – हे जग के स्वामी ! आपकी जय हो । आप मुझ दीन पर कृपा कीजिये। मैं अनेक बार आपको नमस्कार करता हूँ | 

भौमवार कर होम विधाना ।
धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥

भावार्थ – जो भी भक्त मंगलवार को विधि पूर्वक हवन करें तथा धूप – दीप और नैवेद्य समर्पित करता है | 

मंगल दायक को लौ लावे ।
सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥

भावार्थ – और इसके साथ ही साथ मंगलकारी श्री हनुमान जी में ध्यान लगाता, वह चाहे देवता हो या मनुष्य या मुनि हो, तुरंत ही उसका फल पाता है ।

जयति जयति जय जय जग स्वामी ।
समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥

भावार्थ – हे जगत के स्वामी ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, जय हो ! हे हनुमान जी ! आप समर्थ विश्वात्मा  सभी के मन की बात जानने वाले हो | 

अंजनि तनय नाम हनुमाना ।
सो तुलसी के प्राण समाना ॥

भावार्थ – अंजनी सुत होने के कारण आपका नाम आंजनेय है । आप तुलसी के कृपा-निधान हैं | 

— दोहा —

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण ॥

भावार्थ – सुग्रीव जी की जय, अंगद जी की जय , हनुमान जी की जय, श्री राम लक्ष्मण जी, सीता जी सहित सदा हमारा कल्याण कीजिए ।

बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥

भावार्थ – मंगलवार के दिन को प्रमाण मानकर हनुमान जी का यह पाठ जो भी करता है और यदि वह मनुष्य निश्चय करके ध्यान करे तो अवश्य ही कल्याणकारी परम पद को प्राप्त करता है।

जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥

भावार्थ – तुलसीदास की यह घोषणा है कि जो इस हनुमान साठिका का नित्य पाठ करेगा वह कभी संकट में नहीं पड़ेगा। स्वयं शिव जी इसके साक्षी हैं।

— सवैया —

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥

जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥

भावार्थ – श्री तुलसीदास जी कहते हैं – हे हनुमानजी ! मैं भारी विपत्ति में आपको पुकार रहा हूँ। आप मेरी प्रार्थना सुनिये । अंगद, नल, नील, महादेव, राजा बलि, भगवान राम ( देव ) बलराम, शूरवीर  जांबवंत, सुग्रीव, पवन पुत्र हनुमान, द्विद और मयन्द – इन बारह वीरों को मैं बलिहारी (न्यौछावर) हूँ | कृपा कर भक्त के दुःख और दोष को दूर कीजिये।

हनुमान साठिका से सम्बंधित प्रश्न !!

Ques – हनुमान साठिका के पढ़ने के क्या लाभ हैं ?

Ans – इस पाठ को करने आपके सभी दुख समाप्त हो जाते हैं | यदि आप बीमारियों से ग्रस्त हैं तो आप इस पाठ को करे जिससे आपके सारे कष्ट दूर हो जायेगे | इस पाठ को करने से बहुत जल्दी लाभ मिलता हैं | इस सठिका का हर रोज पाठ करने से घर में बुरे प्रभाव प्रवेश नहीं करते | इस पाठ को करने से आप सभी पर हनुमान जी कृपा बनी रहती हैं |

हनुमान जी आप सभी के हर संकट से आपकी रक्षा करते हैं | इस पाठ को करने से आपकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं | यदि आप सच्चे मन से इस पाठ को करते हैं तो आपको अच्छे परिणाम मिलते और धन धान्य की कमी नहीं होती | यदि आप को किसी भी तरह का भय हैं तो इस पाठ को जरूर करे जिससे कि आपको मन में शांति मिलेगी और कोई भी नकारत्मक विचार आपके मन में नहीं आएंगे तथा समस्या दूर होगी |

Ques – श्री हनुमान साठिका की रचना किसके द्वारा की गयी ?

Ans – हनुमान चालीसा के समान ही हनुमान साठिका की रचना भी संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा ही की गई है।

Ques – हनुमान साठिका का पाठ कब और कैसे करें ?

Ans – हनुमान साठिका का पाठ मंगलवार या शनिवार के दिन करना अति शुभ माना गया है और आप इस पाठ को प्रातः काल या सायं काल कभी भी कर सकते हैं | 

हनुमान साठिका का पाठ आप मंगलवार या शनिवार से शुरू करके 1, 5 या 7 बार कर सकते हैं | किसी विशेष उद्देश्य के लिए इस पाठ को साठ दिनों तक भी करा जा सकता है पर ध्यान रहे की जितने पाठ करने का संकल्प हो उतने पाठ अवश्य पूरे करें | इस पाठ को आप घर में हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति की सामने कर सकतें हैं अगर हो सके तो हनुमान साठिका पाठ को मंदिर में जाकर करें यह अधिक फलदायी होगा | 

हनुमान साठिका का पाठ करते समय सदा कोशिश करें की मन में गलत अर्थात नकारात्मक विचार न आएं तथा हनुमान जी पर श्रद्धा और विश्वास रखकर पाठ करें |

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जय हनुमान ||

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