राधा जन्म, पेड़ स्वरूप में हैं अभी भी विद्यमान तथा अन्य कई प्रसंग

राधा, जिसे राधिका भी कहा जाता है, एक हिंदू देवी और भगवान कृष्ण की प्रिय हैं। उन्हें प्रेम, कोमलता, करुणा और भक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। वह लक्ष्मी की अवतार हैं और उन्हें गोपियों की प्रमुख के रूप में भी वर्णित किया गया है। कृष्ण की युवावस्था के दौरान, वह उनके प्रेमी और साथी के रूप में दिखाई देती हैं, हालांकि उन्होंने उनसे शादी नहीं की है।

राधा, एक सर्वोच्च देवी और कृष्ण की आंतरिक शक्ति के रूप में मानी जाती हैं | राधा, कृष्ण के निवास; गोलोक में निवास करती हैं। कहा जाता है कि राधा अपने सभी अवतारों में कृष्ण के साथ जाती हैं। करें राधा की आराधना जिससे आप पर होगी कृष्ण की भी विशेष कृपा, साथ ही साथ नीचे पढ़ें राधा से जुड़े प्रसंग |

1. radha ji ki aarti

राधा जी की आरती एक उपयुक्त जीवनसाथी के साथ-साथ आपके जीवन में प्यार के लिए भी की जाती है। राधा जी की पूजा करने पर कृष्ण जी का आशीर्वाद भी मिलता है |

2. radha chalisa

राधा चालीसा पढ़ने से भक्तों का कल्याण होता है और वे सुख और मंगल दात्री हैं | चालीसा पाठ से मन उल्लास से भर जाता है तथा आंतरिक आनंद की अनुभूति होती है |

3. radha ashtakam

राधा अष्टकम पढ़ने से आपको सुख और धन धान्य की प्राप्ति होती हैं और जीवन में कभी कोई कठिनाई नहीं होती |

4. राधा गायत्री मंत्र

इस मंत्र का जाप करने से आपको एक अच्छा पति मिलने में मदद मिलती है | राधा रानी की आराधना करने से आपको स्वतः ही श्री कृष्ण का आशीर्वाद तथा अच्छा फल प्राप्त होता है |

राधा रानी क्या हैं ?

राधा को मानव आत्मा के लिए एक रूपक के रूप में भी माना जाता है, कृष्ण के लिए उनके प्रेम और लालसा को धार्मिक रूप से आध्यात्मिक विकास और परमात्मा (ब्रह्म) के साथ मिलन के लिए मानवीय खोज के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कई साहित्यिक कृतियों को प्रेरित किया है, और कृष्ण के साथ उनकी रास लीला नृत्य ने कई प्रकार की प्रदर्शन कलाओं को प्रेरित किया है।

राधा का जन्मदिन या प्राकट्य दिवस को “राधाष्टमी” के नाम से जाना जाता है। बरसाना (राधा का जन्म स्थान) में धूमधाम से राधा रानी का जन्मदिन मनाया जाता है। राधा और कृष्ण एक दूसरे के पूरक हैं, जहां कृष्ण हैं, वहां राधा भी वास करती हैं और जहां राधा हैं, वहां कृष्ण का वास भी जरूर होता है। राधा को कृष्ण की आत्मा कहा जाता है, इसलिए भगवान कृष्ण का एक नाम “राधारमण” भी है। जिस प्रकार भगवान कृष्ण अजन्मे हैं, वैसे ही राधा भी अजन्मी हैं। 

राधा की जन्म कथा 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राधा रानी का जन्म उनकी माता के गर्भ से नहीं हुआ है। वह श्रीकृष्ण के जैसे ही अजन्मी हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, राधा जी कृष्ण जी के साथ गोलोक में रहती थीं। एक बार उनकी अनुपस्थिति में कृष्ण अपनी दूसरी पत्नी विरजा के साथ घूम रहे थे। तभी राधा जी आ गईं, वे विरजा पर नाराज हुईं तो वह वहां से चली गईं।

तब श्रीकृष्ण के सेवक और मित्र श्री दामा को राधा की यह बात ठीक नहीं लगी। वे राधा को भला बुरा कहने लगे। बात इतनी बिगड़ गई कि राधा ने नाराज होकर श्री दामा को अगले जन्म में शंखचूड़ नामक राक्षस बनने का श्राप दे दिया। इस पर श्रीदामा ने भी उनको पृथ्वी लोक पर मनुष्य रूप में जन्म लेने का श्राप दिया।

इस कारण राधा जी ने मथुरा के रावल गांव में वृषभानु जी की पत्नी कीर्ति की बेटी के रूप में जन्म लिया, लेकिन वे कीर्ति के गर्भ में नहीं थीं। भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी, मध्यान्ह के समय सहसा एक दिव्य ज्योति प्रसूति गृह में फैल गई, यह इतनी तीव्र ज्योति थी कि सभी के नेत्र बंद हो गए। एक क्षण पश्चात् गोपियों ने देखा कि एक नन्ही बालिका कीर्ति मैया के पास लेटी हुई है। उसके चारों ओर दिव्य पुष्पों का ढेर है।

नृग पुत्र राजा सुचन्द्र और पितरों की मानसी कन्या कलावती ने 12 वर्षों तक तप करके ब्रह्म देव से राधा को पुत्री रूप में प्राप्ति का वरदान मांगा था। फलस्वरूप द्वापर में वे राजा वृषभानु और रानी कीर्ति के रूप में वे जन्मे और दोनों पति-पत्नी बने और राधा ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया | 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राधा का विवाह “रायाण” से हुआ था। रायाण भगवान श्रीकृष्ण का ही अंश थे। जब राधा को श्राप मिला था तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा था कि तुम्हारा मनुष्य रूप में जन्म तो होगा, लेकिन तुम सदैव मेरे पास रहोगी।

कृष्ण के ह्रदय में वास करने वाली राधा बरसाना में पली-बढ़ी थीं, लेकिन उनका जन्‍म यहां से 50 किमी दूर रावल गांव में हुआ था। मान्यता है कि यहां स्थापित मंदिर के ठीक सामने एक बगीचा है, जहां आज भी राधा-कृष्ण पेड़ के रूप में मौजूद हैं।

पेड़ स्वरूप में हैं राधा और श्याम

रावल गांव में स्थापित राधा के मंदिर के ठीक सामने प्राचीन बगीचा है। कहा जाता है कि यहां पर पेड़ स्वरूप में आज भी राधा और कृष्ण मौजूद हैं। यहां पर एक साथ दो पेड़ हैं। एक श्वेत है तो दूसरा श्याम रंग का। इसकी रोज पूजा होती है।

11 महीने बाद बालकृष्ण के सामने खुले नेत्र

शास्त्रों के अनुसार, राधा जी के नेत्र जन्म से लेकर करीब 11 महीने तक बंद रहे। वहीं, दूसरी तरफ मथुरा में कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍म हुआ। रातों रात उन्हें गोकुल में नंद बाबा के घर पहुंचाया गया। कंस के डर से उस वक्त कृष्ण का जन्मोत्सव नहीं मनाया गया। 11 महीने बाद नंद बाबा ने सभी जगह संदेश भेजा और कृष्‍ण का जन्‍म उत्‍सव मनाया गया। गोकुल के राजा वृषभानु जी भी बधाई लेकर गोकुल पहुंचे। उनकी गोद में राधा रानी भी थीं। वहां बैठते ही राधारानी घुटने के बल चलते हुए बालकृष्ण के पास पहुंची और तभी उन्होंने अपने नेत्र खोल दिए।

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