radha ashtakam – जानें श्री राधा अष्टकम का अर्थ, लाभ एवं विधि

राधा अष्टकम 8 श्लोकों की अद्भुत रचना हैं जिसमें श्री राधे यानी कि वृन्दावनेश्वरी राधा रानी की  महिमा का गुणगान किया गया है और इसका पाठ करने से भक्तों का मन शांत होता है तथा श्री राधा तथा कृष्ण अर्थात मुरली वाले की कृपा भी आप सभी पर बरसती है | यदि आप इस पाठ को अपनी दिनचर्या में शामिल करने से सदा ही श्री राधा रानी और श्री कृष्ण की अपार कृपा आप पर बनी रहेगी | 

हमने आप सभी पाठकों की इच्छानुसार यहाँ सबसे पहले radha ashtakam in sanskrit तथा उसके बाद radha ashtakam in hindi भी दिया है जिसमें की उसका सम्पूर्ण अर्थ हिंदी में सम्मिलित किया गया है |

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radha ashtakam lyrics

नमस्ते श्रियै राधिकार्य परायै नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै । 
सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तःप्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ॥

स्ववासोऽपहारं यशोदासुतं वा स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् । 
स्वदानोदरं या बबन्धाशु नीव्या प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसी ताम् ॥

 दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं महाप्रेमपूरेण राधाभिधाऽभूः । 
स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ प्रपञ्चाय मे कृष्णरूपे समक्षम् ॥

मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्धः पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः । 
उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन् कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम् ॥

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम् । 
सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षः श्रियं चिन्तयेत् सचिदानन्दरूपाम् ॥

मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गीमहं व्याप्यमानांतनुस्वेदविन्दुम् । 
महाहार्दवृष्टया कृपापाङ्गदृष्टया समालोकयन्ती कदा त्वां विचक्षे ॥

पदावावलोके महालालसौघं मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः । 
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तहदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ॥

सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात् सदा राधिका रूपमक्ष्यग्र आस्ताम् । 
श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तःस्वभावे गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे॥

इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य । 
सतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधानिसखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः ॥

राधा आरती करने से कृष्ण जी का विशेष आशीर्वाद मिलता है |

राधा अष्टकम अर्थ सहित (radha ashtakam with meaning)

नमस्ते श्रियै राधिकार्य परायै नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै । 
सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तःप्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ॥

अर्थ – हे राधा ! तुम ही श्री लक्ष्मी हो तुम्हें कोटि कोटि नमस्कार है, तुम ही परम शक्ति हो तुम्हें बार बार नमस्कार है | तुम मुकुंद अर्थात श्री कृष्ण की प्रिय हो, तुम्हें नमस्कार है | हे सदानंद स्वरूपा देवी तुम मेरे अन्तःकरण में श्याम सुंदर श्री कृष्ण के साथ शोभायमान होती हुई मुझ पर प्रसन्न हो जाओ |

स्ववासोऽपहारं यशोदासुतं वा स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् । 
स्वदानोदरं या बबन्धाशु नीव्या प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसी ताम् ॥

अर्थ – हे राधे ! आप तो उन श्री कृष्ण की आराधना करती हैं जिन्होंने आपके वस्त्रों को चुराया था तथा चुपचाप धोखे से आपका माखन भी चुराया करते थे | आपने तो अपनी निवि से श्री कृष्ण के उधर को भी बांध लिया था जिसके कारन उनका नाम “दामोदर” पड़ा | निश्चय ही मैं उन दामोदर प्रिया की शरण लेता हूँ |

 दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं महाप्रेमपूरेण राधाभिधाऽभूः । 
स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ प्रपञ्चाय मे कृष्णरूपे समक्षम् ॥

अर्थ – हे राधा रानी ! आपने उन श्री कृष्ण की आराधना की जिनकी आराधना करना बहुत कठिन है परन्तु आपने अपनी आराधना तथा अपने निश्छल महान प्रेम से श्री कृष्ण को भी अपने वश में कर लिया जिसके कारण आप पूरे जगत में “श्री राधा” के नाम से विख्यात हैं | श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपने अपने आप को यह नाम दिया है, हे राधा रानी मैं आपकी शरण में हूँ मुझ पर कृपा करो तथा मुझे श्री हरी का प्रेम प्रदान करो |

मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्धः पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः । 
उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन् कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम् ॥

अर्थ – हे राधे ! प्रभु श्री कृष्ण तो सदा तुम्हारी प्रेम डोर से बंधे रहते हैं और एक पतंग की भांति तुम्हारे आस पास ही रहते हैं और क्रीड़ा करते हैं | हे देवी, हे श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपकी कृपा तो सब पर होती है, आप मुझ पर भी अपनी कृपा करें तथा मुझ से भी अपनी सेवा करवाएं | 

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम् । 
सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षः श्रियं चिन्तयेत् सचिदानन्दरूपाम् ॥

अर्थ – हे देवी आप प्रतिदिन नियत समय पर श्री कृष्ण को अङ्क की माला अर्थात अंक की माला अर्पित करती हैं तथा उनके साथ उनकी लीला भूमि श्री वृन्दावन धाम में उनके साथ विचरण करती हैं | भक्तजनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा-कटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानन्द स्वरूप श्री लाडली का हमें उनका चिंतन करना चाहिए ।

मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गीमहं व्याप्यमानांतनुस्वेदविन्दुम् । 
महाहार्दवृष्टया कृपापाङ्गदृष्टया समालोकयन्ती कदा त्वां विचक्षे ॥

अर्थ – श्री राधे ! तुम्हारे मन तथा प्राणों में उन आनन्दकन्द श्री कृष्ण की असीमित अनंत प्रीति व्याप्त है अतएव तुम्हारे श्रीअङ्ग अर्थात श्रीअंग सदा ही रोमांच से विभूषित रहते हैं तथा तुम्हारा अंग अंग सूक्ष्म संवेद बिंदुओं से सुशोभित रहता है | तुम अपनी कृपा-कटाक्ष से परिपूर्ण दृष्टि द्वारा घनिष्ठ अनंत प्रेम की वर्षा करती हुई मेरी तरफ देख रही हो, इस अवस्था में मुझे कब श्री राधे आपका दर्शन होगा ?

पदावावलोके महालालसौघं मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः । 
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तहदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ॥

अर्थ – हे देवी ! यद्यपि श्यामसुन्दर श्री कृष्ण स्वयं ही ऐसे हैं कि उनके चरणों का चिंतन किया जाए, तथापि वे स्वयं भी तुम्हारे चरण चिह्नों के अवलोकन की बड़ी लालसा रखते हैं। हे देवी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप कृपा कर मेरे अन्तःकरण में असीम प्रकाश बिखेरते हुए अपने चरणारविन्द का मुझे दर्शन कराए।

सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात् सदा राधिका रूपमक्ष्यग्र आस्ताम् । 
श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तःस्वभावे गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे॥

अर्थ – हे राधे ! मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर सदा ही आपका नाम विद्यमान रहे, मेरे नेत्रों के समक्ष सदा आपका ही रूप प्रकाशित हो | हे देवी मेरे कानों में आपकी कीर्ति कथा गूंजती रहे और अन्तर्हृदय में लक्ष्मी-स्वरूपा श्री राधा के ही असंख्य गुणों का चिंतन होता रहे, बस यही मेरी आपसे कामना है।

इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य । 
सतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधानिसखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः ॥

अर्थ – जो भी दामोदर प्रिया श्री राधा से संबंध रखने वाले इन आठ श्लोकों का पाठ करते हैं, वह सदा ही श्री कृष्ण धाम वृन्दावन में उनकी सेवा के अनुकूल सखी शरीर पाकर सुख से रहते हैं।

राधा अष्टकम से सम्बंधित प्रश्न !!

Ques – श्री राधा अष्टकम का नियमित पाठ करने के क्या लाभ होते हैं ?

Ans – Radha ashtakam का नियमित पाठ करने के बहुत सारे लाभ ( benefits ) होते हैं | इस पाठ को करने या सुनने से जातक इस संसार में सुख प्राप्त करता है तथा अंत में जीवन मरण के इस चक्र से मुक्त होकर श्री वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त करता हैं | 

  • श्री राधा अष्टकम का नियमित पाठ करने से मन को एक असीम शांति का अनुभव होता है तथा जीवन से सभी प्रकार की बुराइयां दूर होती है | 
  • आप स्वस्थ, धन धान्य  से परिपूर्ण और समृद्ध बनते हैं | 
  • इस पाठ के द्वारा आपके सभी प्रकार के भयों का नाश होता है एवं व्यक्ति के आत्मबल और साहस में वृद्धि करता है | 
  • यह भी कहा जाता है कि यह अष्टकम पाठ सभी प्रकार की बीमारियों से निजात दिलाने में सहायता करता है
  • घर में सुख, शांति एवं समृद्धि का प्रसार करता है | 
  • छात्रों, नौकरीपेशा लोगों और व्यावसायिक लोगों के ज्ञान और कौशल में वृद्धि करता है |

Ques – श्री राधा अष्टकम को पढ़ने की सही विधि बताएं ?

Ans – राधा अष्टकम का पाठ सुबह के समय करना सबसे अच्छा होता है क्योंकि उस समय मन शांत होता है । पाठ शुरू करने से पहले नित्य क्रिया से निवृत होकर, स्नान कर लेवें । उसके बाद अपने घर के मंदिर के सामने बैठकर भी यह पाठ कर सकते हैं ।

इसके बाद श्री राधा जी की प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष धूप-दीप-अगरबत्ती जलाएं तथा संकल्प लें कि आप पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करेंगे। अब पाठ का आरम्भ करें | पाठ करने के बाद आप राधा रानी को भोग लगाएं और प्रसाद को घर के सभी सदस्यों में बांटे तत्पश्चात स्वयं ग्रहण करें |

Ques – श्री राधा अष्टकम पढ़ने का सही समय क्या है ?

Ans – वैसे तो भगवान को याद करने का कभी कोई भी समय गलत नहीं होता परन्तु फिर भी शास्त्रों में श्री राधा अष्टकम के पाठ करने के लिये कोई खास दिन निर्धारित नहीं है | जब भी आपका मन शांत हो तब आप किसी भी समय आप इस पाठ को कर सकते हैं। वैसे सुबह का समय पूजा पाठ के लिए सबसे अच्छा होता है |

राधा अष्टकम image

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राधा अष्टकम PDF

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राधे राधे ||