खाटू श्याम का जन्म, शिक्षा तथा क्यों कहते हैं इन्हें हारे का सहारा और शीश के दानी

खाटू श्याम को बर्बरीक के नाम से जाने जाते हैं | वे गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र हैं। बचपन से वीर योद्धा थे | उन्होंने युद्ध की कला अपनी माँ तथा कृष्ण से सीखी | साथ ही शिव की तपस्या करके उन्होंने तीन अमोघ बाण प्राप्त किये और तीन अमोघ बाण के कारण उन्हें तीन बाणधारी के नाम से लोग जानने लगे और वे तीनो बाणो से तीनो लोको पर विजय प्राप्त करने  में  सक्ष्म हो गए थे और साथ ही अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किये |

हम इस लेख में खाटू श्याम से संबंधित विभिन्न प्रसंगों के बारे में तथा उनकी उपासना में सहायक प्रार्थनाओं के बारे में विस्तार से बात करेंगे ।

1. khatu shyam chalisa

खाटू श्याम चालीसा का पाठ करने से मन में हिम्मत बढ़ती हैं और आपकी सभी विपत्तियाँ और परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही साथ आपको व्यापार और उद्योग में सफलता मिलती है।

2. khatu shyam aarti

खाटू श्याम जी की आरती करने से आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जातक यदि श्याम का नाम निरंतर लेता है तो उसके जीवन में सकारात्मकता आती है |

खाटू श्याम हारे का सहारा

महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के बीच हो रहा था तब बर्बरीक को युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई |  युद्ध में जाने पहले वह अपनी माँ का आशीर्वाद लेने गए और माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देखकर आये | वे अपने घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष लेकर कुरुक्षेत्र की ओर चल पड़े।

कृष्ण ने ब्राह्मण भेष धारण करके बर्बरीक जाने से रोका और यह कहकर उनकी हँसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने जा रहे हो | इस बर्बरीक ने जबाव दिया कि मेरा एक बाण ही शत्रु की सेना को हराने के बाद ही तूणीर में ही आएगा | यदि मै तीनों बाणों को प्रयोग करुगा तो पूरे ब्रह्मांड का विनाश हो जाएगा। यह सुनकर भगवान् कृष्ण ने उनसे कहा  कि इस पेड़ के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ। वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए | 

बर्बरीक ने तूणीर से एक बाण निकाला और भगवान का स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया | बाण ने पलभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया | और कृष्ण के पैर के चारों और चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता कृष्ण ने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था | बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा; बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष कमजोर और हार रहा होगा वह उसी का साथ देंगे । कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की होगी | इस वजह से बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत हो जायेगा | 

खाटू श्याम शीश के दानी

कृष्ण ब्राह्मण रूप में थे इसलिए उन्होंने बर्बरीक से दान देने की अभिलाषा व्यक्त की | बर्बरीक ने वचन दिया जो आपने मांगना हैं वो आप मांग सकते हो | ब्राह्मण रूपी कृष्ण ने उनका शीश का दान माँगा | बर्बरीक कुछ पल भर के लिए अचंभित हो गए ,परन्तु अपने वचन पर अडिग रहे | बर्बरीक बोले कहा कोई भी ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं माँग सकता | ब्राह्मण से अपने वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना की | ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप आये | कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान माँगने का कारण समझाया युद शुरू होने पहले युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सबसे महान के शीश की आहुति देनी होती है इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे | बर्बरीक ने कृष्ण जी से प्रार्थना की वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं। उन्होंने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली | कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से सम्मानित किया | उनके शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर स्थापित किया | जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का देख सकते थे। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये जाते हैं | 

बर्बरीक का नाम खाटू श्याम कैसे पड़ा ? महाभारत के युद्ध के समाप्त होने के बाद पाण्डवों में ही आपसी विवाद होने लगा कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है? कृष्ण ने उनसे कहा सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी बर्बरीक हैं बर्बरीक से बेहतर निर्णायक कौन हो सकता हैं ? पाण्डवों इस बात से सहमत हो गये और पहाड़ी की ओर चल पड़े, वहाँ पहुँचकर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि कृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं उन्हें तो सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र युद्ध भूमि घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो शत्रु सेना को परास्त कर रहा था | कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी खुश हुए और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है। उनका शीश खाटू नगर में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम नाम से जाना जाता हैं |

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