सूर्य नमस्कार मंत्र | Surya Namaskar Mantra | Surya Namaskar Mantra Meaning in hindi

सूर्य नमस्कार मंत्र (Surya Namaskar Mantra) को शांत मन के साथ, अपने आप को सूर्य देव (surya dev) के चरणों में समर्पित करते हुए जाप करने से निश्चित ही शारीरिक तथा मानसिक कष्ट खत्म होते हैं तथा जीवन से अज्ञानता का अंधकार मिट जाता है | यहाँ हमने मंत्र से समबन्धित सभी प्रश्नों के उत्तर भी दिए हैं तथा मंत्र जाप की विधि, लाभ इत्यादि का भी वर्णन किया है |
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सूर्य नमस्कार मंत्र | Surya Namaskar Mantra lyrics in hindi | Surya Namaskar Mantra in hindi | Surya Namaskar Mantra | सूर्य नमस्कार मंत्र अर्थ सहित

Surya Namaskar Mantra lyrics

ॐ मित्राय नमः
ॐ रवये नमः
ॐ सूर्याय नमः
ॐ भानवे नमः
ॐ खगाय नमः
ॐ पूष्णे नमः
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
ॐ मरीचये नमः
ॐ आदित्याय नमः
ॐ सवित्रे नमः
ॐ अर्काय नमः
ॐ भास्कराय नमः
ॐ श्री सबित्रू सुर्यनारायणाय नमः

सूर्य मंत्र का रोजाना जाप करने से बहुत ही शीघ्र सुखदायी फल प्राप्त होते हैं तथा जाप से चिंता, तनाव, नकारात्मक सोच और मानसिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है |

Surya Namaskar Mantra video

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Credit – Rajshri Soul

Ques – सूर्य नमस्कार मंत्रों के अर्थ बताएं ( सूर्य नमस्कार मंत्र अर्थ सहित ) ?

Ans –

पहला मंत्र

ॐ मित्राय नमः ( सच्चे मित्र को प्रणाम करने का भाव )

ॐ मित्राय नमः यहाँ मित्राय का मतलब मित्रता से है । यहाँ सूर्य देव को हम सभी का सच्चा मित्र बताया गया है और वह हमारे सहायक भी हैं । सच्चे मित्र का संबोधन हमेशा मित्र कहकर ही किया जाता है | उनके समक्ष इस मंत्र का प्रयोग करके हम सूर्य देव से हमारी मित्रता का भाव प्रकट कर रहे हैं।

यह मंत्र हम सभी में मित्रता के प्रति एक विश्वास भी जगाता है और यह बताता है कि हमें सभी के साथ मित्रता की भावना रखनी चाहिए।

दूसरा मंत्र

दूसरा मंत्र ॐ रवये नमः ( प्रकाश पुंज को प्रणाम करना )

“रवये“ शब्द का अर्थ है जो स्वयं प्रकाशवान है तथा सम्पूर्ण जीवों को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान करता है जिससे सभी जीवों का कल्याण हो सके ।

सूर्य नमस्कार मंत्रों की तृतीय स्थिति हस्तउत्तानासन में इस दिव्य आशीर्वाद को ग्रहण करने के उद्देश्य से ही शरीर को सूर्यदेव अर्थात शक्तिपुंज की ओर ताना जाता है |

तीसरा मंत्र

ॐ सूर्याय नमः ( सर्वोच्च चेतना तथा उनके प्रेरक को प्रणाम )

यहाँ सूर्य को ईश्वर के रूप में अंकित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में सात घोड़ों के जुते रथ पर सवार होकर सूर्य के आकाश गमन की कल्पना की गई है तथा आपको आज भी बहुत से स्थानों पर सूर्यदेव का यही चित्र देखने को मिल जाएगा । ये सात घोड़े परम चेतना से निकलने वाली सात किरणों के प्रतीक हैं । जिनका प्रकटीकरण चेतना के सात स्तरों में होता है – 

प्रथम चेतना – भू (भौतिक)
द्वितीय चेतना – भुवः (मध्यवर्ती, सूक्ष्म ( नक्षत्रीय)
तृतीय चेतना – स्वः ( सूक्ष्म, आकाशीय)
चतुर्थ चेतना – मः ( देव आवास)
पंचमं चेतना – जनः (उन दिव्य आत्माओं का आवास जो अहं से मुक्त है) 
छठम  चेतना – तपः (आत्मज्ञान, प्राप्त सिद्धों का आवास) 
सप्तम चेतना – सप्तम् (परम सत्य)

सूर्य देव स्वयं सर्वोच्च चेतना के प्रतीक हैं तथा चेतना के सभी सात स्वरों को नियंत्रित करते हैं । देवताओं में सूर्य का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है । वेदों में वर्णित सूर्य देवता का आवास आकाश में है उनका प्रतिनिधित्व करने वाली अग्नि का आवास भूमि पर माना गया है।

चतुर्थ मंत्र

ॐ भानवे नमः ( प्रज्ज्वलित होने वाले तथा अंधकार नाश करने वाले को प्रणाम )

सूर्य को भौतिक स्तर पर गुरु का प्रतीक माना गया है, हनुमान जी के गुरु भी सूर्यदेव ही हैं। इसका सूक्ष्म तात्पर्य है कि गुरू हमारी भ्रांतियों के अंधकार को दूर करता है और हमें सही पथ पर अग्रसर करता है जैसे की प्रातः वेला में सूर्यदेव के अनंत प्रकाश से रात्रि का अंधकार ख़तम हो जाता है।

इसीलिए अश्व संचालनासन की स्थिति में हम उस प्रकाश पुंज की ओर मुँह करके अपने अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हेतु सूर्यदेव से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु अपनी करुणामयी दृष्टि हम पर डालकर हमें इस अज्ञान रुपी अंधकार से बाहर निकालो |

पांचवा मंत्र

ॐ खगाय नमः ( आकाशगामी समय का ज्ञान देने वाली शक्ति को प्रणाम )

समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्राचीन काल से ही सूर्य की गति के हिसाब से समय बताने वाले सूर्य यंत्रों के प्रयोग से लेकर वर्तमान के जटिल यंत्रों के प्रयोग तक हमेशा ही आकाश में सूर्य की गति को ही समय का आधार माना गया है। हम इस शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं जो समय का ज्ञान प्रदान करती है तथा उनसे हमारे तथा सभी जीवों के जीवन को अच्छा बनाने की प्रार्थना करते हैं।

छठा मंत्र

ॐ पूष्णे नमः ( शक्तिदायक तथा पोषक को प्रणाम )

सूर्य सभी शक्तियों तथा जीवन का स्त्रोत है। एक पिता की भाँति वह हमें शक्ति, प्रकाश तथा जीवन देकर हमारा पोषण करता है। सूर्यदेव के कारण ही सभी जीव जंतु, पौधे – वृक्ष आदि सभी जीवित हैं |

साष्टांग नमस्कार की स्थिति में हमें शरीर के सभी आठ केंद्रों को भूमि से स्पर्श करते हुए हम इस दिव्य शक्ति को प्रणाम करते हैं तथा आशा करते हैं कि वह हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें।

सातवां मंत्र

ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ( स्वर्णिम प्रकाश पुंज को प्रणाम )

हिरण्यगर्भ, स्वर्ण के अंडे के समान एक ऐसी रचना है जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई मानी गयी है | सूर्य को भी हिरण्यगर्भ के समान माना गया है । हिरण्यगर्भ को प्रत्येक कार्य का परम कारण माना गया है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, आविर्भाव के पूर्व अन्तर्निहित अवस्था में हिरण्यगर्भ के अन्दर अव्यक्त रहता है। इसी प्रकार समस्त जीव जिनमें जीवन का संचार है सूर्य में अन्तर्निहित है।

भुजंगासन में हम सूर्य के प्रति सम्मान प्रकट करते है तथा यह प्रार्थना करते है कि हमारे अंदर रचनात्मकता का उदय हो।

आठवां मंत्र

ॐ मरीचये नमः ( सूर्य रश्मियों को प्रणाम )

मरीच ब्रह्मपुत्रों में से एक है परन्तु यहाँ इसका अर्थ मृग मरीचिका से लिया गया है। जैसे की हम जीवन भर सत्य की खोज में इधर उधर भटकते रहते हैं | जिस प्रकार एक प्यासा व्यक्ति मरूस्थल में ( सूर्य रश्मियों से निर्मित ) मरीचिकाओं के जाल में फँसकर जल के लिए मूर्ख की भाँति इधर-उधर दौड़ता रहता है। इसलिए हम यहाँ पर सूर्यदेव से हमें सही रास्ता दिखाने तथा इस भ्रमजाल को ख़तम करने का निवेदन करते हैं | 

इसलिए पर्वतासन की स्थिति में हम सच्चे ज्ञान तथा विवेक को प्राप्त करने के लिए नतमस्तक होकर प्रार्थना करते हैं जिससे हम सत्य तथा असत्य के अंतर को सही प्रकार समझ सकें।

नौवां मंत्र

ॐ आदित्याय नमः ( अदिति-पुत्र को प्रणाम )

विश्व जननी ( महाशक्ति ) के अनंत नामों में एक नाम है अदिति माता । उन्ही को समस्त देवी देवताओं की जननी माना गया है, वह अनन्त तथा सीमारहित हैं। उन्हें आदि रचनात्मक शक्ति कहते हैं जिससे सभी शक्तियां उत्पन्न हुई हैं।

अश्व संचालनासन में हम उस अनन्त विश्व-जननी को प्रणाम करते हैं।

दसवां मंत्र

ॐ सवित्रे नमः ( सूर्य की उत्प्रेरक शक्ति को प्रणाम )

सवित्र जागृत करने वाले देवता हैं । इसका संबंध सूर्य देव से स्थापित किया जाता है। सावित्री उगते सूर्य का प्रतिनिधि है जो मनुष्य को जागृत करते हैं तथा क्रियाशील बनाते हैं । “सूर्य“ शब्द पूर्ण रूप से उदित सूरज का प्रतिनिधित्व करता है। जिसके प्रकाश में सभी प्रकार के कार्य संपन्न होते है। 

सूर्य नमस्कार की हस्तपादासन स्थिति में सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति की प्राप्ति हेतु सवित्र देव को प्रणाम किया जाता है।

ग्यारहवां मंत्र

ॐ अर्काय नमः ( ऊर्जा के स्त्रोत को प्रणाम )

अर्क का तात्पर्य “ऊर्जा” से है । सूर्य को विश्व की सभी शक्तियों का प्रमुख स्रोत माना गया है। हस्तउत्तानासन में हम जीवन तथा ऊर्जा के इस स्त्रोत के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते है।

बारहवां मंत्र

ॐ भास्कराय नमः ( मार्गदर्शक को प्रणाम )

सूर्य नमस्कार की अंतिम स्थिति में प्रणाम आसन के द्वारा आध्यात्मिक सत्यों के महान प्रकाशक के रूप में सूर्य को अपनी श्रद्धा समर्पित की जाती है।

सूर्य हमारे चरम लक्ष्य अर्थात जीवन की मुक्ति के मार्ग को प्रकाशित करने वाला है। इस अंतिम प्रणामासन ( नमस्कारासन ) में हम सूर्यदेव से यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें यह मार्ग दिखाएं। इस प्रकार सूर्य नमस्कार पद्धति में बारह मंत्रों का अर्थ सहित भावों का समावेश किया गया है |

Ques – सूर्य मंत्र का जप करने की सही विधि बताएं ?

Ans – सूर्य देव की प्रार्थना सूर्योदय से पहले शुरू की जाए तो सबसे अच्छा होता है | प्रार्थना धूप या अगरबत्ती जलाकर तथा ताजे फूल अर्पण करके की जा सकती है | रविवार का दिन सूर्यदेव की पूजा के लिए सबसे अच्छा माना जाता है इसलिए आप रविवार से जप करना प्रारम्भ कर सकते हैं | इस समय मन स्वच्छ व निर्मल रखें कोई भी नकारात्मक भाव न लाएं जिससे सूर्य नमस्कार के समय सभी सकारात्मक स्पंदनों का स्वागत किया जा सके।

Ques – सूर्य नमस्कार करने के क्या लाभ होते हैं ?

Ans – सूर्य नमस्कार करने से अनगिनत शारीरिक तथा मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं | 

  • यह शरीर को लचीला बनाकर मांसपेशियों को टोन करता है।
  • शरीर में वजन को नियंत्रित करता है अगर किसी का वजन अधिक है तो उसे काम और अगर किसी का वजन कम है तो उसे सही अनुपात में लाता है | 
  • शरीर के सभी अंगों में रक्त संचार ठीक करता है तथा अधिक और कम रक्तचाप में भी राहत देता है | 
  • यह हृदय तथा फेफड़ों के कामकाज में सुधार करता है तथा उन्हें स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है ।
  • रीढ़ और कमर को अधिक लचीला बनाता है साथ ही साथ मांसपेशियों को मजबूत करता है।
  • पाचन में सुधार करता है, कब्ज को ख़तम क्र इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है ।
  • एकाग्रता शक्ति में सुधार करता है।

Ques – सूर्य मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई ?

Ans – “सूर्य” संस्कृत का शब्द है | सूर्य से ही सृष्टि में जीवन के विकास का क्रम चलता है। सृष्टि में जल, थल और नभ में रहने वाले सभी जीव सूर्य पर ही निर्भर हैं । सूर्य के बिना इस सृष्टि में जीवन संभव नहीं है। इसलिए गुरुओं ने सूर्य को नमस्कार करने के बारह मंत्र दिए है जिसके द्वारा हम सभी उन सूर्य को जो हमें इतना कुछ दे रहें हैं उनका अभिनन्दन कर सकें।

सूर्य नमस्कार का जिक्र सबसे पहले आदित्य हृदय स्तोत्र में मिलता है जो की रामायण के युद्ध कांड में है। आदित्य हृदय स्तोत्र का ज्ञान ऋषि अगस्त ने भगवान श्री राम को दिया था।

सूर्य नमस्कार मंत्र PDF | Surya Namaskar Mantra PDF free download

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जय सूर्य देव ||

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