शनि देव को क्यों चढ़ाते हैं सरसों का तेल, जन्म कहानी, पूजा, वाहन तथा असीम शक्तियां

शनिदेव के पिता सूर्य देव हैं और इनकी माता छाया हैं | हिन्दू मान्यता के अनुसार शनि देव की प्रार्थना बुराई और व्यक्तिगत बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती हैं | शनि नाम होने के कारण इनकी पूजा शनिवार के दिन की जाती हैं और इन पर सरसों का तेल चढ़ाया जाता हैं जिससे शनि प्रसन्न होते हैं |

हम इस लेख में शनिदेव से संबंधित विभिन्न पहलुओं के बारे में तथा शनिदेव की उपासना में सहायक प्रार्थनाओं के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

1. shani chalisa

शनि चालीसा के पाठ से शनि देव की साढ़ेसाती खत्म हो जाती हैं | इस पाठ को करने से आप परेशानियों से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि शनिदेव जिस किसी पर मेहरबान होते हैं उसके जीवन को खुशियों और सौभाग्य से भर देते हैं।

2. shani dev aarti

शनि देव आरती का पाठ आपके जीवन में आने वाली परेशानियों और कठिनाइयों को दूर करने में सक्षम होती हैं | आपको जीवन में सुख और भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है।

3. दशरथकृत शनि स्तोत्र

शनिदेव को न्यायाधीश की उपाधि दी गई है | अगर आप शनि की  साढ़ेसाती से मुक्ति पाना चाहते है तो आप हर शनिवार के दिन दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ जरूर करें ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं |

शनि देव की उत्पत्ति

पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव सूर्यदेव और छाया के पुत्र हैं | जब शनिदेव माता छाया के गर्भ में आये तो उस समय पर उन्होंने शिव को प्रसन्न करने के लिए तेज धूप में बैठकर उपवास किया | इससे सूर्य देव क्रोधित हो गए | इस कारण शनिदेव गर्भ में ही काले हो गए | जब शनिदेव ने जन्म लिया तब सूर्य ग्रहण में चले गए | कहने का अर्थ ये हैं कि उस समय शनिदेव अपने पिता पर क्रोध करके उन्हें काला  कर रहे थे |

हिन्दू कथाओं के अनुसार शनि देव के बड़े भाई यम हैं जो कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद न्याय करते हैं | जब कि शनि देव जी व्यक्ति के जीवत रहने पर न्याय करते हैं | इस कारण दोनों को ही न्यायधीश की उपाधि दी गयी हैं | कुछ लोग शनिदेव को लोगों के अच्छे और बुरे कर्मों का फल देने वाला मानते हैं और उन्हें भगवान विष्णु के अवतार की संज्ञा देते हैं। शनि देव की दो पत्नियां नीलिमा और दामिनी हैं |

शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाना

रामायण के एक प्रसंग में बताया गया कि रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया था जब हनुमान जी सीता जी की खोज करते हुए लंका गए तब उन्होंने रावण की कैद में शनिदेव को देखा तब हनुमान जी ने उन्हें कैद से निकाल कर लंका से दूर फेंका जिससे वह सुरक्षित रहे | हनुमान जी के द्वारा शनिदेव का बचाव करने के कारण उन्हें काफी चोटे लग गई | इस पर हनुमान जी ने उनकी सभी चोटो  पर सरसों का तेल लगाया जिसे शनिदेव को काफी आराम मिला | तभी से शनिदेव सरसो का तेल चढ़ाने से बहुत अधिक प्रसन्न होते हैं | इसलिए हम यह भी कह सकते हैं की शनि देव तथा हनुमान के बीच गहरी दोस्ती है | 

शनि देव की पूजा 

शनिवार के दिन शनि देव को तेल चढ़ाने से बहुत अधिक लाभ मिलता हैं और शनि की साढ़ेसाती से छुटकारा मिलता है और आपको आपके सभी कामों में सफलता मिलती हैं, शनि आपके सभी कष्टों को हर लेते हैं | शनि देव को तेल चढ़ाने से हनुमान जी की कृपा बनी रहती है | साथ ही शनि की महादशा से भी छुटकारा मिलता है।

शनि देव के वाहन

शनिदेव का सबसे प्रमुख वाहन गिद्ध है, जो कि गरुड़ का छोटा भाई है | गरुड़, विष्णु जी का वाहन है | शनिदेव के और भी वाहन हैं जैसे कुत्ता, गधा, घोड़ा, शेर, सियार, हाथी, हिरण और मोर | यम इनके भाई हैं इसलिए इनका एक और वाहन भैंसा भी बताया गया है |

शनि देव न्यायाधीश के रूप में

भगवान शनि देव हमारे विचारों के न्यायाधीश हैं | इस समाज में जब लोग पूरी  जागरूकता के साथ अपने चारों ओर दूसरों पर पाप, अन्याय और अपराध करते हैं और ऐसे अंधेरे में छिपकर ऐसे पाप कर्म करते हैं और वह सोचते हैं उनकी कोई गलती नहीं हैं उन्हें लगने लगता है कि कोई भगवान नहीं है |

ऐसे लोगों को उनकी मूर्खता के लिए पश्चाताप करने के लिए, और उन्हें शुद्ध करने के लिए भगवान शनि देव उन्हें दंडित करते हैं। तो साढ़े साती शुरू होती है, भगवान शनिदेव न्यायाधीश बन जाते हैं और व्यक्ति को दंड देकर शुद्ध करते हैं।

शनि देव करुणा के सागर

भगवान सूर्य के पुत्र शनि देव नश्वर लोक के ऐसे देवता हैं जो समय आने पर मनुष्य के अच्छे और बुरे कर्मों को तौलते हैं और सजा देते हैं और उसे शुद्ध करते हैं।

  • भगवान शनि एक न्यायाधीश हैं। और निर्णय हमेशा निष्पक्ष होता है। इसलिए उसे क्रूर माना जाता है।
  • भगवान शनि का सांवला रंग ऐसा है कि उस पर कोई दूसरा रंग नहीं टिक सकता।
  • शनि देव की धातु लोहा और स्टील है जो सबसे उपयोगी और मजबूत है।
  • भगवान शनि का सबसे बड़ा उद्देश्य गरीबों और बीमारों की मदद करना है।
  • भगवान शनि की पसंदीदा चीजें जैसे तेल, कोयला, लोहा, काला ‘तिल’, उड़द, जूते और चप्पलें भिक्षा के रूप में दी जाती हैं।
  • शनि देव अध्यात्म के स्वामी हैं। जो भी भक्ति, तपस्या, समर्पण आदि प्रमुख महत्व के हैं।
  • शनि देव सामाजिक एकता के स्वामी हैं। उनकी कृपा के बिना परिवार की एकता की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  • शनि देव सामाजिक, राजनीतिक, पारंपरिक, आध्यात्मिक, करियर, शैक्षिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में सफलता का वरदान देते हैं।
  • शनि देव रोगों से मुक्ति दिलाते हैं और लंबी आयु प्रदान करते हैं।
  • भगवान शनि ‘कलयुग’ के देवता हैं।
  • भगवान शनि के कई नाम हैं। और उसके पराक्रम का क्षेत्र विशाल और महान है।
  • उच्च और पराक्रमी से लेकर भी सभी सामान्य लोग शनिदेव से डरते हैं।
  • शनि देव के हथियार धनुष और बाण और त्रिशूल हैं।

क्या शनि देव हमें परेशान करते हैं

आज हम ‘कलयुग’ में जी रहे हैं | ये आधुनिक समय पाप और अपवित्रता से भरा है। और इस अपवित्र युग में लोग सुख की तलाश में इंटरनेट, टेलीविजन, हवाई जहाज, ट्रेन, कंप्यूटर आदि जैसी सुविधाओं का पीछा कर रहे हैं। हमें यह याद रखना चाहिए इन सभी कारणों से सुख और शांति मनुष्य से और दूर जा रहे हैं। इस हाथापाई में लोग कहते हैं कि शनिदेव हमें परेशान कर रहे हैं। लेकिन क्यों? क्या उन्हें लगता है कि भगवान के पास करने के लिए बेहतर कुछ नहीं है? क्या उसकी सभी से दुश्मनी है? क्या शनि देव शत्रु हैं?

लोग शनिदेव को दी जाने वाली सजा से ज्यादा उनसे डरते हैं। क्या होता है कि लोग खुद मौत से ज्यादा मौत के डर से मरते हैं। शनि देव की भक्ति शरीर, परिवार, समाज, मन, वित्त और व्यवसाय से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान करती है। लोगों दूसरों को डराने के लिए शनिदेव का नाम लेते हैं, लेकिन उस डर को दूर करने के लिए यह बहुत कम किया जाता है। इसलिए प्रभु से डरें नहीं बल्कि उनकी आराधना करें और जीवन में अतुलित सुख प्राप्त करें | 

शनि का इतिहास

 खगोल शास्त्र’ के अनुसार शनि की पृथ्वी से दूरी 9 करोड़ मील है। इसका दायरा करीब एक अरब 82 करोड़ 60 लाख किलोमीटर है। और इसका गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में 95 गुना अधिक है। शनि ग्रह को सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में 19 साल लगते हैं। शनि की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से अधिक है। इसलिए जब हम अच्छे या बुरे विचार सोचते हैं और योजना बनाते हैं, तो वे शनि की शक्ति के बल पर पहुंचते हैं। लेकिन अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलेगा। इसलिए हमें शनिदेव को शत्रु नहीं मित्र समझना चाहिए। और बुरे कर्मों के लिए वह साढ़े साती, विपत्ति और शत्रु हैं।

जय शनि देव || 

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