साईं बाबा का शिरडी में आना, द्वारकामाई, धुनि, उदी, जन्म कहानी एवं उनका स्वरुप तथा मिशन

साईं बाबा को जानना बिल्कुल भी आसान नहीं हैं | हम अकथनीय की व्याख्या कैसे करें? बाबा के असीम प्रेम और उनकी व्यापकता का वर्णन कौन कर सकता है ? उनके बारे में कहा जाता हैं वे अपने भक्तों के लिए प्रेम के अवतार थे | एक बार जब हम यह पता लगाना शुरू करते हैं कि बाबा कौन हैं, तो हमें पता चलता है उनका वर्णन करने के लिए कुछ नहीं है |

साईं बाबा शिरडी में एक फकीर के रूप रहकर लोगों की सेवा किया करते थे | शिरडी के लोग भी इस सेवा भाव के कारण उन्हें भगवान के रूप में मानते थे | साई बाबा हमेशा राम कृष्ण हरी तथा अल्लाह मालिक जैसे शब्दों का प्रयोग किया करते थे । हम इस लेख में साई बाबा से संबंधित विभिन्न पहलुओं के बारे में तथा उनकी उपासना में सहायक प्रार्थनाओं तथा उनके जीवन के बारे में विस्तार से बात करेंगे ।

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साईं बाबा की आरती करने से आपकी इच्छाएं पूरी होती हैं और आपको हर तरह के दुखों से दूर रखती है |

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साईं चालीसा करने से साईं बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जातक को धन-धान्य में वृद्धि होती है |

साईं बाबा की जन्म कथा

साईं बाबा के जन्म के बारे में किसी भी दस्तावेज से पूरी तरह पता नहीं चला | बल्कि एक कथा के रूप में प्रचलित है कि एक बार साईं बाबा ने अपने भक्त  म्हालसापति को बताया था कि मेरा जन्म पाथरी के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। साथ ही माता पिता ने बचपन में  मुझे एक फकीर को दे दिया था | उनके जन्म स्थान और तिथि के बारे में जो भी बाते सामने आई है वह उनके अनुयायियों के विश्वास एवं श्रद्धा पर आधारित हैं | शिरडी के साईं बाबा की कुछ प्रारंभिक जीवन सम्बन्धी घटनाओं पर प्रकाश डाला है जिससे ज्ञात होता है कि साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर 1835 में हैदराबाद राज्य के पाथरी नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

शिरडी में साईं बाबा का आना

पारंपरिक कथाओं के अनुसार साईबाबा पहली बार सोलह साल की उम्र में शिरडी में एक नीम के पेड़ नीचे दिखाई दिए | उनके निवास के बारे में कुछ चामत्कारिक कथाएँ हैं कि चाँद पाटिल के निकट सम्बन्धी की बारात में उनके साथ बाबा  शिरडी गाँव गए | विवाह संपन्न होने के बाद बारात लौट गयी परंतु बाबा को वह जगह बहुत पसंद आयी और वही जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में रहने लगे और अंत तक वही रहे |  

साईं नाम कैसे प्राप्त हुआ 

कहा जाता है कि चाँद पाटिल के सम्बन्धी की बारात जब शिरडी में खंडोबा मंदिर के पास पहुंची तब बारात के लोग बैल गाड़ियों से उतरने लगे तब एक श्रद्धालु व्यक्ति म्हालसापति ने साथ में फकीर को देखकर उन्हें “साईं” नाम से सम्बोधित किया | धीरे-धीरे शिरडी में सभी लोग उन्हें “साईं बाबा” के नाम जानने लगे |  इस प्रकार वे साईं नाम से प्रसिद्ध हुए | 

साईं बाबा की कथा के अनुसार

साईं बाबा का पालन-पोषण एक मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ | वे हमेशा “अल्लाह मालिक” कहा करते थे और वे सभी धर्मों की एकता पर बल देते थे | उनके अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। वह अपने आश्रय स्थल पर दोनों के ही पर्व मनाया करते थे |  

साईं बाबा किस रूप में जाने जाते हैं ?

साईं बाबा को देखे गए सबसे महान संतों में से एक के रूप में सम्मानित किया जाता है | जो अभूतपूर्व शक्तियों से संपन्न होते हैं और एक भगवान के अवतार के रूप में पूजे जाते हैं।

साईं बाबा का मिशन 

बाबा का मिशन “आशीर्वाद देना” है और बीमारों को ठीक करना, जीवन बचाना, कमजोरों की रक्षा करना, दुर्घटनाओं को टालना, संतान देना, वित्तीय लाभ की सुविधा देना |

साईं बाबा की द्वारकामाई

बाबा का निवास (समाधि मंदिर परिसर के भीतर स्थित) साठ वर्षों तक लगातार समाधि लेने तक था। बाबा ने यहां अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद दिया करते थे | द्वारकामाई में जिस शिला पर बाबा विराजमान थे, वह स्थित है। बाबा द्वारा प्रज्वलित पवित्र अग्नि (धूनी) भी यहाँ सदा जलती रहती है। बाबा की भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए साईं बाबा इसी धुनी से पवित्र उदी देते थे। 

साईं बाबा की धुनी

धूनी द्वारकामाई का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह बाबा के साथ बहुत घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। धूनी वह पवित्र, सदा जलती हुई आग है जिसे बाबा ने बनाया था और जिसे तब से बनाए रखा गया है, हालांकि आज यह आग बहुत बड़ी है | 

साईं बाबा की उदी 

बाबा अपने आगंतुकों को धूनी से उदी देते थे। बाबा की उदी की उपचार शक्ति अच्छी तरह से प्रलेखित है | बाबा की उदी लेने से लोगों के दर्द या बीमारियां ठीक हो जाती थी | उदी अभी भी वितरण के लिए आग से एकत्र की जाती है। यह बाबा के अपने अभ्यास की निरंतरता है, और उदी से आती है जिस अग्नि को स्वयं बाबा ने जलाया, वह अत्यंत पवित्र मानी जाती है। आज भी सीढ़ियों के पास भक्तों के लिए उदी की एक छोटी ट्रे रखी जाती है।

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