पौराणिक कथाओं के अनुसार नदियों को देवी का दर्जा दिया गया है और उनकी पूजा की जाती है | नर्मदा नदी प्रमुख नदियों में से एक है। सभी लोग इन्हें देवी के रूप में पूजते हैं और इनकी महिमा का गुणगान करते हैं। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से मनुष्य को सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है और उसका जीवन सुखमय बीतता है।
नर्मदा चालीसा का पाठ करने से आपको माँ नर्मदा का आशीवार्द मिलता है | नर्मदा नाम का अर्थ है “नर” अर्थात सुख और “दा” अर्थात देने वाली। इसीलिए इन्हें सुख देने वाली देवी भी कहा जाता है | अगर आप मां नर्मदा जी की आरती लिरिक्स भी साथ करते है तो आपके सभी कष्ट दूर हो जाते है |
॥ दोहा॥
देवि पूजित, नर्मदा,
महिमा बड़ी अपार ।
चालीसा वर्णन करत,
कवि अरु भक्त उदार॥
इनकी सेवा से सदा,
मिटते पाप महान ।
तट पर कर जप दान नर,
पाते हैं नित ज्ञान ॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय नर्मदा भवानी,
तुम्हरी महिमा सब जग जानी ।
अमरकण्ठ से निकली माता,
सर्व सिद्धि नव निधि की दाता ।
कन्या रूप सकल गुण खानी,
जब प्रकटीं नर्मदा भवानी ।
सप्तमी सुर्य मकर रविवारा,
अश्वनि माघ मास अवतारा ॥
वाहन मकर आपको साजैं,
कमल पुष्प पर आप विराजैं ।
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,
तब ही मनवांछित फल पावैं ।
दर्शन करत पाप कटि जाते,
कोटि भक्त गण नित्य नहाते ।
जो नर तुमको नित ही ध्यावै,
वह नर रुद्र लोक को जावैं ॥
मगरमच्छा तुम में सुख पावैं,
अंतिम समय परमपद पावैं ।
मस्तक मुकुट सदा ही साजैं,
पांव पैंजनी नित ही राजैं ।
कल-कल ध्वनि करती हो माता,
पाप ताप हरती हो माता ।
पूरब से पश्चिम की ओरा,
बहतीं माता नाचत मोरा ॥
शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं,
सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं ।
शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं,
सकल देव गण तुमको ध्यावैं ।
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे,
ये सब कहलाते दु:ख हारे ।
मनोकमना पूरण करती,
सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं ॥
कनखल में गंगा की महिमा,
कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा ।
पर नर्मदा ग्राम जंगल में,
नित रहती माता मंगल में ।
एक बार कर के स्नाना,
तरत पिढ़ी है नर नारा ।
मेकल कन्या तुम ही रेवा,
तुम्हरी भजन करें नित देवा ॥
जटा शंकरी नाम तुम्हारा,
तुमने कोटि जनों को है तारा ।
समोद्भवा नर्मदा तुम हो,
पाप मोचनी रेवा तुम हो ।
तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाई,
करत न बनती मातु बड़ाई ।
जल प्रताप तुममें अति माता,
जो रमणीय तथा सुख दाता ॥
चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी,
महिमा अति अपार है तुम्हारी ।
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी,
छुवत पाषाण होत वर वारि ।
यमुना मे जो मनुज नहाता,
सात दिनों में वह फल पाता ।
सरस्वती तीन दीनों में देती,
गंगा तुरत बाद हीं देती ॥
पर रेवा का दर्शन करके
मानव फल पाता मन भर के ।
तुम्हरी महिमा है अति भारी,
जिसको गाते हैं नर-नारी ।
जो नर तुम में नित्य नहाता,
रुद्र लोक मे पूजा जाता ।
जड़ी बूटियां तट पर राजें,
मोहक दृश्य सदा हीं साजें ॥
वायु सुगंधित चलती तीरा,
जो हरती नर तन की पीरा ।
घाट-घाट की महिमा भारी,
कवि भी गा नहिं सकते सारी ।
नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा,
और सहारा नहीं मम दूजा ।
हो प्रसन्न ऊपर मम माता,
तुम ही मातु मोक्ष की दाता ॥
जो मानव यह नित है पढ़ता,
उसका मान सदा ही बढ़ता ।
जो शत बार इसे है गाता,
वह विद्या धन दौलत पाता ।
अगणित बार पढ़ै जो कोई,
पूरण मनोकामना होई ।
सबके उर में बसत नर्मदा,
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ॥
॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि के,
जो करता है जाप ।माता जी की कृपा से,
दूर होत संताप॥
॥ इति श्री नर्मदा चालीसा ॥
नर्मदा चालीसा को करने से क्या लाभ मिलता है?
- इस चालीसा को करने से आपको सम्मान मिलता है |
- नर्मदा चालीसा पाठ को सच्चे मन के साथ करने वाले को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
- इस पाठ को करने से माँ नर्मदा के साथ भगवान शिव का भी आशीर्वाद मिलता है |
- इस चालीसा के पाठ से , न सिर्फ इस जन्म में बल्कि पिछले कई जन्मों में हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है|
- माँ की कृपा हमेशा आप पर बरसती रहती है |
नर्मदा चालीसा का पाठ करने की पूजा विधि क्या है?
- सबसे पहले आप स्नान करे तथा फिर सफेद वस्त्र धारण करें और एक चौकी पर गंगाजल छिड़क कर उस पर सफेद कपड़ा बिछाएं और उस मां नर्मदा की फोटो रखें | .
- इसके बाद मां नर्मदा को सफेद फूल, फल और मिठाई अर्पित करें |
- मां नर्मदा के सामने घी का दीपक जलाएं और मां नर्मदा की विधिवत पूजा करें |
- फिर आप माँ नर्मदा का चालीसा पढ़ना आरभ करें |
- अब आप मिठाई का भोग लगाएं |
- अंत में मां नर्मदा को चढ़ाया हुआ प्रसाद घर के सभी लोगों के बीच में वितरित करें |
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