Dhanvantari Chalisa Lyrics in Hindi

धन्वंतरी भगवान भगवान विष्णु के अवतार है। प्रचीन ग्रंथों के अनुसार इन्होंने धरती पर समुद्र मंथन के समय अवतार लिया था। दिवाली से 2 दिन पहले इनके जन्म को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है | धनवंतरी प्रभु महान चिकित्सक, आयुर्वेद शास्त्र के देवता और देवताओं के वैद्य माने गए है इसलिए इनकी भक्ति से श्रद्धालुओं को निरोगी और स्वस्थ शरीर मिलता है | अगर आप धन्वंतरि जी आरती  करते है तो आपको उनकी अटूट कृपा की प्राप्ति होती है | 

II दोहा II

करूं वंदना गुरू चरण रज, ह्रदय राखी श्री राम।

मातृ पितृ चरण नमन करूँ, प्रभु कीर्ति करूँ बखान II

तव कीर्ति आदि अनंत है , विष्णुअवतार भिषक महान।

हृदय में आकर विराजिए, जय धन्वंतरि भगवान II

II चौपाई II

जय धनवंतरि जय रोगारी। सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी II

तुम्हारी महिमा सब जन गावें। सकल साधुजन हिय हरषावे II

शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना। तुम्हरी कृपा से सब जग जाना II

कथा अनोखी सुनी प्रकाशा। वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा II

कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा। दीन्हा सब देवन को श्रापा II

श्री हीन भये सब तबहि। दर दर भटके हुए दरिद्र हि II

सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका। ब्रह्म विलोकत भये हुँ अशोका II

परम पिता ने युक्ति विचारी। सकल समीप गए त्रिपुरारी II

उमापति संग सकल पधारे। रमा पति के चरण पखारे II

आपकी माया आप ही जाने। सकल बद्धकर खड़े पयाने II

इक उपाय है आप हि बोले। सकल औषध सिंधु में घोंले II

क्षीर सिंधु में औषध डारी। तनिक हंसे प्रभु लीला धारी II

मंदराचल की मथानी बनाई। दानवो से अगुवाई कराई II

देव जनो को पीछे लगाया। तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया II

मंथन हुआ भयंकर भारी। तब जन्मे प्रभु लीलाधारी II

अंश अवतार तब आप ही लीन्हा। धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा II

सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया। स्तवन सब देवों ने गाया II

अमृत कलश लिए एक भुजा। आयुर्वेद औषध कर दूजा II

जन्म कथा है बड़ी निराली। सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी II

सकल देवन को दीन्ही कान्ति। अमर वैभव से मिटी अशांति II

कल्पवृक्ष के आप है सहोदर। जीव जंतु के आप है सहचर II

तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा। सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा II

देव भिषक अश्विनी कुमारा। स्तुति करत सब भिषक परिवारा II

धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा। आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा II

तुम्हरी कृपा से धन्व राजा। बना तपस्वी नर भू राजा II

तनय बन धन्व घर आये। अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये II

सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये। कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये II

आठ अंग में किया विभाजन। विविध रूप में गावें सज्जन II

अथर्व वेद से विग्रह कीन्हा। आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा II

काय ,बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा। शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा II

माधव निदान, चरक चिकित्सा। कश्यप बाल , शल्य सुश्रुता II

जय अष्टांग जय चरक संहिता। जय माधव जय सुश्रुत संहिता II

आप है सब रोगों के शत्रु। उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु II

सकल औषध में है व्यापी। भिषक मित्र आतुर के साथी II

विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञान। सकल औषध ज्ञान बखानि II

भारद्वाज ऋषि ने भी गाया। सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया II

काय चिकित्सा बनी एक शाखा। जग में फहरी शल्य पताका II

कौशिक कुल में जन्मा दासा। भिषकवर नाम वेद प्रकाशा II

धन्वंतरि का लिखा चालीसा। नित्य गावे होवे वाजी सा II

जो कोई इसको नित्य ध्यावे। बल वैभव सम्पन्न तन पावें II

II दोहा II

रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ।

जरा व्याधि मद लोभ मोह, हरण करो भिषक नाथ II

II इति धन्वंतरि चालीसा सम्पूर्ण II

धन्वंतरी चालीसा करने से क्या लाभ मिलते है?

  •  धन्वन्तरी चालीसा को करने से जीवन खुशहाल और शांतिपूर्ण रहता है 
  • इस चालीसा को करने से शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते है |
  • आपके घर के आस-पास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • भगवान धन्वंतरी का आर्शीवाद हमेशा आप पर बना रहता है | 
  • इससे आपके जीवन की सभी समस्याओं का अंत होता है।
  • इस चालीसा को करने से आपको लम्बी आयु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

धन्वंतरी चालीसा करने की पूजा विधि क्या है?

भगवान धनवंतरी की पूजा के लिए उनकी फोटो को पूर्व दिशा में स्थापित करें | फिर आप उनका ध्यान करें | इसके बाद उनकी तस्वीर पर फूल, जल, कलावा, धूप , दीप और नैवेद्य चढ़ाएं | इसके पश्चात आप उनका चालीसा पढ़ना आरभ करें | जब चालीसा पूर्ण हो जाये तो फिर भगवान धनवंतरी को प्रसाद जरूर लगाए |

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