Durga Ashtami Vrat Katha: दुर्गा अष्टमी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक राक्षस था जिसका नाम दुर्गम था। इस क्रूर राक्षस ने तीनों लोकों पर बहुत अधिक अत्याचार किया था। सभी इसके अत्याचार से बहुत परेशान थे। दुर्गम के भय से सभी देवगण स्वर्ग छोड़ कैलाश चले गए थे। कोई भी देवता इस राक्षस का अंत नहीं कर पा रहा था। क्योंकि इसे वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता उसका वध नहीं कर पाएगा। ऐसे में इस परेशानी का हल निकालने के लिए सभी देवता भगवान शिव के पास विनती करने पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा।

दुर्गम राक्षस का वध करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपनी शक्तियों को मिलाया और ऐसे माता दुर्गा का जन्म हुआ। यह तिथि शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। मां दुर्गा को सबसे शक्तिशाली हथियार दिया गया। मां दुर्गा ने दुर्गम राक्षस के साथ युद्ध की घोषणा कर दी। मां ने दुर्गम का वध कर दिया। इसके बाद से ही दुर्गा अष्टमी की उत्पति हुई। तब से ही दुर्गाष्टमी की पूजा करने का विधान है।

कथा करने के बाद दुर्गा माता की आरती करें |

दुर्गा अष्टमी व्रत की पूजा विधि क्या है?

  • अष्टमी के दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है | 
  • अष्टमी के दिन स्नान के बाद मां दुर्गा का सोलह शृंगार का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए | 
  • इस दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है इसलिए इस दिन मिट्टी के नौ कलश रखे जाते हैं और देवी दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान कर उनका आह्वान किया जाता है।
  • माता महागौरी अन्नपूर्णा का रूप हैं। इस दिन माता अन्नपूर्णा की भी पूजा होती है इसलिए अष्टमी के दिन कन्या भोज और किसी जरूरतमंद को भोजन कराया जा सकता है।
  • माता को आप प्रसाद के रूप में हलुआ, नारियल, खीर और चने अर्पित कर सकते हैं | 
  • अगर आप पूजन हवन करे रहे तो आप 9 कन्याओं को भोजन अवश्य खिलाये।
  • हलुआ आदि प्रसाद को आप वितरित कर दे |

दुर्गा अष्टमी व्रत कथा इन हिंदी पीडीऍफ़

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